अन्तर्जाली स्मरणिका और तुम
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बो कल का दिन था!जब तुम्हे पिछले 13 वर्ष उपरांत पुनः एक बिसराई हुई कसक की तरह सहज कुरेदा था मेने।
महसूस किया था..तुम्हारे पंचम स्वर में निहित वेदना को,रुग्णता के पलो में जो दिव्य औषधि रूपी साथ था! आज छिन्न-भिन्न सा है ।
जेसे किसी ने वर्षो से संजोये हुए मुक्तकों की मणिका को एक पल में खण्डित कर दिया हो,और में और तुम छिटक के शिखर के किसी बिबर में पढ़कर अनन्त रसातल की यात्रा पर निकल चुके हों....!!
हम एक ऐसी यात्रा के सहभागी बनकर रह गए।जो जीवन के प्रतिभागी बनने में दो राहे से होकर निकलनी थी।तुम्हारे शब्द मूक होकर मष्तिष्क में भूचाल ला देते थे। कितना कुछ समानता का समिश्रण था, स्वर से मुखर तक पुष्प-श्रद्धा के साथ आभा का समीकरण तक।यहां तक की अंतरात्मयी ऐश्वर से धमनियों के रक्त तक का एक ही होना संयोग मात्र नहीं हो सकता था.!!!
हाँ में!!
तुम्हारे अदृश्य एक कृतिक का आज भी उपासक हूँ, किन्तु स्मरणी चिन्हो से वंचित हूँ।क्योंकि जब हृदय में साक्षात-चिरस्थायी एक प्रतिबिम्ब हो तो स्मरणीका चिन्ह स्वयं का स्वरूप छोड़कर अनन्त में यात्राबलंबित हो जाते हैं न.....??
किन्तु अन्तर्जाली स्मृति एक वर्ष-दस वर्ष, प्रतिवर्ष अथवा उम्र रहने तक,साँस चलने तक।सहज ही कुछ न कुछ स्मरण करने को प्रतिबद्ध करते रहती है।
कि आज १० वर्ष की स्मरण,साढ़े तीन वर्ष की स्मृति कणिका अपना अनन्त ०(शून्य) त्याज्य करके पुनः ११ (एकादस) आलंबन के लिए स्वागतातुर है ।और तुम्हारा यथेस्ट १(एक), अभीस्ट १(एक) युग्म न होकर सदैव एकाकारी ही रह गया !
शीर्ष पर लघु शून्य,मध्य में वक्रार्द्ध और तल में निम्नतम तक नींव के साथ अपना असितित्व लिए बस प्रतीक्षित सा खड़ा है ।
फिर स्वविवेक अनुसार तुम १ से लेकर ९की दहाई तक,अपने भाल को किसी से भी अंकित करो ये एकल था।एकल की सन्तुति और एकल ही प्रतीकित होगा।।
किसी का योग बनना सम्भवतः मेरी नीयति में नहीं और दहाई रिक्त होकर भी कोई रिक्तता नहीं ..!!!!
समय हंस से उसके पखेरू कुतरकर उसकी उड़ान समाप्त कर सकता है।किंतु उसके विवेकी नीर-क्षीर पृथक करने की क्षमता को कभी समाप्त नही कर सकता है।
संकल्पों के कभी विकल्प नही होते,विकल्पों के सदैव अनन्त संकल्प जो होते है।एकमेवता संकल्पता की शिद्धि है,जिसके समक्ष विवेक और श्रेष्ठता की परिशिष्ठता समाप्त हो जाती है ।
कुछ अनुभूतियां आजन्म समाप्त नही होती हैं,जैसे किसी का होना-न होना।अदृश्यता में दृश्यता व भास-आभाष से मुक्त अनुभूति भी एक सजीव आभा है ।
श्रेष्ठता परिमापन की असल आजतक कोई इकाई नही बनी है,वह तो हम लोंगो की नजर है जो...लाभ-हानि से जोड़कर श्रेष्ठता व निष्ठता का स्वभाव अनुसार परिमापन किया करती है ।
।। श्रद्धा_पुष्प_आभा_के_स्वमेवी_एकाकी भाव के साथ,स्वयं को साक्षात भावव्यक्ति पूर्ण होने पर ..प्रथम से आज १३ वर्षीय पूर्ण होने पर बधाई के साथ श्रद्धांजलि ।।
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~ जितेंद्र सिंह तोमर '५२से'
चम्बल मुरैना मप्र .