मैं एक सनातनी हूँ,
क्षात्र मेरा धर्म है,
मेरा राष्ट्रीय ध्वज है,
क्षात्र व सूर्य तेज युक्त वह केसरिया ध्वज,?
जिसे कभी महान क्षत्रिय सम्राट विक्रमादित्य ने हिन्दुकुश से लेकर अरब की भूमि तक लहराया था।
अगर मैं कहूँ मेरी पहचान न मैं भारतीय हूँ,
न आर्यावर्त, न जम्बूद्वीप?
मेरी पहचान तो मेरे धर्म से जुडी है,
क्योंकि राष्ट्र तो बनते है और बिगड़ते है,
अखंड होते है, खंडित होते है?
पर मूल राष्ट्रीयता या मेरी असल पहचान तो मेरी वह संस्कृति है जो इस महान अपराजेय व कालजयी सनातन धर्म से मिली है?
मेरे आदर्श मेरे नायक तो सनातन धर्म ध्वज धारक उस धर्म पताका को विश्व में फहराने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम, योगेश्वर प्रभु श्री कृष्ण, चक्रवर्ती क्षत्रिय सम्राट विक्रमादित्य, क्षत्रिय सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार ,वीर शिवाजी महाराज, वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप, सम्राट पृथ्वीराज चौहान , सम्राट अनंगपाल सिंह तोमर , वीर दुर्गादास राठौड़ , सम्राट हर्षवर्धन बैंस, राजा सुहेलदेव बैंस, बुंदेला वीर छत्रसाल महाराज , अप्रितम जुंझार योद्धा धीर सिंह पुण्डीर, राजमाता जिया रानी( मौला देवी पुण्डीर), भड़ माधो सिंह भंडारी , अपराजेय योद्धा आल्हा उधल, वीरवर गोरा बादल, महावीर स्वामी, गौतम बुद्ध ,गुरु गोविन्द सिंह, पंडित उपाधि धारक रामप्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह, ठाकुर महावीर सिंह राठौर, बाबू कुंवर सिंह, लेफ्टिनेंट जनरल हणुत सिंह राठौर, मेजर शैतान सिंह भाटी, जनरल बिपिन सिंह रावत जैसे अनेकों अनेक क्षात्र धर्म ध्वज धारक महापुरुष व युगपुरोधा है।
सनातन में क्षात्र धर्म के सिद्धांतों आदर्शों ने ही इस भारत देश की मातृ समान भूमि को संस्कृति के सर्वोच्च सिंहासन पर बिठाया था।
यदि ये धर्म न हो तो राष्ट्रीयता का कैसा बोध ?
धर्म नहीं रहेगा तो मैं भी भारत देश की इस भूमि को मातृभूमि न मान कर साधारण भूमि मानूँगा।
अतः मेरे लिए मेरा धर्म सर्वोच्च है।
धर्म रहा तो इस पृथ्वी पर कही न कही राष्ट्र बन जाएगा।
नाम भी भारत या आर्यावर्त रख लेंगे।
पर धर्म न बचा तो राष्ट्र का अस्तित्व भी संकट में पड़ जाएगा।
इसलिए हमारे पूर्वजों ने धर्म को आधार बना कर इस राष्ट्र का निर्माण किया।
जो कभी जम्बूद्वीप एशिया में फैला था।
धर्म की सीमाएं सिमटी तो राष्ट्र भी आर्यावर्त (ईरान से इंडोनेशिया व मॉरीशस से मास्को) तक सिमट गया।
धर्म और संकुचित हुआ तो आज का भारत रह गया। सनातन धर्म सिमटता गया और राष्ट्र भी खंड खंड में खण्डित होता गया।
जो पाकिस्तान व बंगलादेश कभी हमारा भाग था वह आज खंडित हो गया क्योंकि वहाँ से धर्म लुप्त हुआ और राष्ट्रीयता का बोध समाप्त हो गया।
वर्तमान के राजनेताओं ने धर्म के स्थान पर राष्ट्र को प्रमुखता दी।
धर्मविहीन राष्ट्र कैसा होता है ?
ये आज के राष्ट्र को देखकर जान सकते हैं।
पहले न कोई निर्धन था यदि था तो मन में संतोष था।
धनी व्यक्ति दयालू तथा दानी प्रवृत्ति के थे।
मन में न लोभ मोह था न ईर्ष्या एवं धर्म के प्रसार के कारण राष्ट्रीयता का भी बोध था।
इतनी निष्ठा उस समय चोरों में भी होती थी।
आज वह निष्ठा समाज के रक्षकों से भी लुप्त हो गई क्योंकि धर्म नहीं रहा।
आज अधर्म फैला हुआ है इसलिए समाज में भी असंतोष भय निराशा का बोध है।
राष्ट्रीयता लुप्त है या किसी विशेष अवसर पर ही राष्ट्रभक्ति का बोध होता है।
ऐसे में यदि खंड खंड हो चुके राष्ट्र को बचाना है तो माध्यम धर्म को बनाना होगा।
जब धर्म व संस्कृति बचेगी तो ही ये राष्ट्र भी बचेगा।
अतः धर्म सर्वोपरि है, सनातन संस्कृति ही राष्ट्र का उद्धार करने की क्षमता रखती है।
जय क्षात्र धर्म ।।
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