रविवार, 11 जुलाई 2021

मेरे व्यंग

#गहदुये_गीदड़पंथ

किसी समय कुत्ते जंगल मे व गहदुये (सियार,शृगाल,गीदड़)हम मानवो के साथ पालतू हुआ करते थे। वह दुनिया सबसे विकसित जीव मानव के साथ रहकर मस्त रखबाली करते और कभी-कभार एकाध लठ्ठ खाकर भी पडे रहते। कुल मिलाकर गहदुये बड़े मस्त थे ।
वही बेचारे कुत्ते बड़े परेसान थे,प्रोटोकॉल के तहत ग़ांव के आस-पास मंडराते की ठोक-पीटकर,गहदुओ द्वारा चिथकर अपनी दुर्दसा पर खून के आंसू रोते रहते ।

इसी तरह गहदुओ -कुत्तों का जीवन यापन होते-होते एक लंबा अरसा गुजर गया और ग़ांव में खा-खाकर गहदुओ की चर्बी चढ़ गई ।अब वह खेलते हुए बच्चों को डराने लगे,मानवो पर ही गुर्राने लगे ...मानव स्वभाव से युक्तियों का आविष्कारी प्राणी रहा है और उसने युक्ति पूर्ण तरीके से इस समस्या का निदान करने की ठान ली ।

कुत्तों को इन्विटेसन दिया,गहदुये तो पहले से पूंछ में फूल बनाकर डटे हुए थे। कुत्तों की तरफ भी पूंछो में ढिबरी डालकर बड़े-बड़े पंच आये और पंचायत हुई ।
मानवो ने की सुनो गहदुओ तुम्हारी सन्तति ठीक-ठाक से विकास कर चुकी है अब क्यों न इन कुत्तों की भी दशा में सुधार किया जाए  और सर्वसम्मति से 6-6 माह का ग्रामनिबास दोनों भाइयों को प्रदान करके विकास का चक्र किया जाए !
गहदुये तो दिमाक चर्बी लिए घूम ही रहे उन्होंने बड़े घमंड से "जाओ ये भी क्या याद करेंगे कि किसी ने आश्रय दान किया था!" बोलकर वन गमन कर लिया ।

6 माह बाद समयावधि पूर्ण हुई और कुत्तों की गर्दनों की चाम बदल गयी उधर गहदुये लेंडी,बेर खाकर भूखे रहकर कुछ बड़े शिकारी जानबरो के  शिकार बनकर आधे रह गए। कुत्तों ने मानवो के साथ  निष्ठा व मित्रतापूर्ण व्यवहार बनाकर,पहले से इधर अपनी 'जड़ें चूल्हे तक जमा ली थी' ।
परिणाम यह हुआ कि मानवो ने बोला कि जाकर इन गहदुयो की रेल बना दो ,सालो को इतना कूटो की चारो पहर अपनी दुर्दशा पर रोते रहे ।
गहदुये आये 'हुआये' कुत्तों 'भों-भों' करके अपनी चिरपरिचित गाली से उन्हें सुसज्जित करके रेद दिया...तब से गहदुये रात के चारो प्रहर रोते-चिल्लाते आ रहे है और कुत्ते उन्हें गरियाकर चिथेड़कर भगाते आ रहे है...!
कुत्तों को डर बस किसी 'फिआउली' (पागल गहदुये) से लगता है जो प्रोटोकॉल को 'पौये' की झक्क में फक्क करके कुत्तों की रेल बना देता है और मानव तालिया बजाते आ रहा है ।
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बात कहने का तातपर्य है कि पहले की तरह आज भी कुछ कुत्ते-गहदुये-फिआउली बने लोग शोशल मीडिया में भी है। जो सिर्फ रोना-भोंकना-फफ़ियाना सतत करते रहते है और कभी न कभी किसी न किसी के  'पालतू पट्टे' में जरूर मिलेंगे ..अतः  मानवो को उनसे समुचित दूरी बनाकर रहना चाहिए ।क्योंकि सबको पता 14 इंजेक्सन दोनों के काटने पर 'उपग्रह' छोड़ सीधे पेटकी टुंडी में भाले की तरह कोचे जाने में डॉक्टर दया नही करता है ।  

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JVS. 

sd ओझा सर

जहर से अब आराम हुआ है.

पोटेशियम सायनाइड (KCN) एक यौगिक होता है, जो रंगहीन, दिखने में चीनी जैसा व  पानी में घुलनशील होता है. KCN को सोने की खदानों, आर्गेनिक सिनथेशिस और इलेक्ट्रोप्लेटिंग में इस्तेमाल किया जाता है. छोटे पैमाने पर यह आभूषणों के केमिकल gilding (सोने का पानी चढ़ाना)  और buffing (पालिश करना) के काम आता है.यह एक तीक्ष्ण जहर है. एक बार चाय पीते और साथ में काम करते समय यह जहर बहुत हीं अल्पतम मात्रा में एक कर्मचारी के पेट में चला गया . डाक्टरों की टीम ने कई घंटों के अथक प्रयास के बाद उसे बचा लिया. यह पहला मौका था कि पोटेशियम सायनाइड के जहर से प्रभावित व्यक्ति को बचाया जा सका. इसका एक कण जुबां पर रखते हीं अादमी की मौत हो जाती है. इसका मतलब कि एक कण का सौवां हिस्सा वह जहर होगा, जिसके कारण उसकी जान बची.

आज तक कोई भी पोटेशियम सायनाइड का स्वाद बता नहीं पाया है. कई वैज्ञानिक इस प्रयास में अपनी जान गंवा बैठे हैं. जहर खाते समय हीं वे लिखना शुरू कर देते , पर कोई भी S से आगे नहीं लिख पाया. S से Sweet भी हो सकता है और Sour भी. वैज्ञानिकों के अकारण मौत को देखते हुए इस प्रयोग को बन्द करना पड़ा. बाद में एक भारतीय ने अपने सुसाइड नोट में जो लिखा,वह अक्षरशः दिया जा रहा है   "Doctors, Potassium cyanide, I have tested it. It burns the tongue and tastes acrid ." चूंकि इतना लम्बा लिखना KCN खाने वाले के लिए सम्भव नहीं था, इसलिए इसकी विश्वसनीयता प्रामाणिक नहीं मानी गई.

एक बार और पोटेशियम सायनाइड के स्वाद का पता चलने की बारी आई थी. बात 16 फरवरी सन् 1932 की है. महान् वैज्ञानिक सर सी वी रमण के तत्वाधान में एक विलक्षण प्रयोग हुआ, जिसकी देख रेख देशी विदेशी वैज्ञानिकों की एक टीम कर रही थी. सबसे पहले योगी नरसिंह स्वामी शहद के मानिंद तेजाब चाट गये. फिर संखिया, कुचिला आदि जहरीले पद्दार्थों का उन्होंने सेवन किया. उसके बाद बारी आई पोटेशियम सायनाइड का. जय मां काली के उद्घोषणा के साथ वे पोटेशियम सायनाइड भी खा गये. कुछ देर बाद पूरा हाल तालियों की गड़गड़हट से गूंज उठा. योगी नरसिंह स्वामी भी पोटेशियम सायनाइड का स्वाद नहीं बता पाए. कारण,  एसिड, संखिया और कुचिला का स्वाद चढ़ी उनकी जिह्वा पोटेशियम सायनाइड का स्वाद बताने में असमर्थ रही.

पोटेशियम सायनाइड लोगों की जान हीं नहीं लेती, बल्कि उनके दिलों को जोड़ती भी है. एक बार लैब में साथ साथ काम करने वाले एक लड़की और एक लड़के को पोटेशियम सायनाइड की जरूरत महसूस हुई. दोनों प्यार में धोखा खाए हुए थे. दोनों चुपके चुपके लैब में पोटेशियम सायनाइड खोजते. साथ में किस कदर उन्हें प्यार में धोखा मिला, उसकी चर्चा भी एक दुसरे से करते. पोटेशियम सायनाइड तो मिला नहीं, पर उनका प्यार जरूर परवान चढ़ गया. 

वैज्ञानिकों ने पोटेशियम सायनाइड को प्रभाव हीन करने के लिए एक नया मिश्रण 3- मरसोटोपाइरुवेट बना दिया है, जिसका चूहों पर सफल परीक्षण किया जा चुका है. यह औद्योगिक हादसों और आतंकवादी हमलों में उपयोगी सिद्ध होगा. 

वैसे पोटेशियम सायनाइड इच्छा मृत्यु के लिए रामबाण औषधि है . लाइलाज बीमारी वाले रोगियों को सरकार की सहमति से शान्ति प्रिय और पीड़ा रहित मृत्यु देने का इससे बेहतर और कोई विकल्प नहीं हो सकता. 

जितनी दवा पी उतना हीं तड़पे,
जहर से अब आराम हुआ है!

            साभार -Er S D Ojha सर🙏

समय के झटके2

ज़रा सी देर में, इसरार बदल जाते हैं
वक़्त के साथ, इक़रार बदल जाते हैं!

दौलत है तो सब दिखते हैं अपने से,
वर्ना तो यारो, दिलदार बदल जाते हैं!

न करिये यक़ीं अब इन हवाओं पे भी,
मिज़ाज़ इनके, हर बार बदल जाते हैं!

भूल जाओ अब तो सौहार्द की भाषा,
वक़्त पड़ने पर, घरवार बदल जाते हैं!

जब तक समझ आते हैं अपने पराये,
जीने के तब तक, आसार बदल जाते हैं!

न आजमाइए अब खून के रिश्तों को,
वक़्त पे उनके, व्यवहार बदल जाते हैं!

न ढूंढिए यंहा अब मोहब्बत को इधर
देखते ही देखते, बाज़ार बदल जाते हैं!!

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JVS.

समय के झटके 1

आखिर सांसों का साथ, कब तक रहेगा !
किसी का हाथों में हाथ, कब तक रहेगा !

बस यूं ही डूबते रहेंगे चाँद और सूरज तो,
आखिर रोशनी का साथ, कब तक रहेगा !

अगर जीना है तो चलना पड़ेगा अकेले ही,
आखिर रहबरों का साथ, कब तक रहेगा !

न करिये काम ऐसे कि डूब जाये नाम ही,
आखिर सौहरतों का साथ, कब तक रहेगा !

कभी तो ज़रूर महकेगा उल्फत का चमन,
आखिर ख़िज़ाओं का साथ, कब तक रहेगा !

तुम भी खोज लो ’ ख़ुशी के अल्फ़ाज़' यारा,
आखिर रोने धोने का साथ, कब तक रहेगा !

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मुस्कुराइये अनुभव तो मिला
     JVS.

ये नयन

#ये_नयन
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अपनी आँखों से-अपनी आँखों का कभी प्रतिबिम्ब  निहारा है,..कभी किसी की आँखों मे,इस दुनिया-जंहान की दिलकसी का नजारा इतना मोहक होता है कि पलके झपकना भूलकर जड़ हो जाती है..जैसे उन्हें भय मिश्रित अपेक्षा हो कि कंही पल भर की झपकी ..वह मोहिनी न भंग करदे जिसकी कब से प्रतीक्षा की थी !

आपके नयन ही आपके प्रति हुए उस अतीव आकर्षण का मूल से प्रतीत होते है..आप जब मुझे देखकर हया से लजाती हुई पलको को ढालती है न,तब प्रतीत होता है हृदय के स्पंदन की गति कहीं इतनी तीव्रतम न हो जाये ...कि रक्त वेग से शरीर की उन तमाम वाहिकाओं का असितित्व एक झटके में सिमट जाये !

यूं तो सिनेमाई अदाकारों ने,फ़नकारों ने नयनो को खूब तबज्जो दी पर मुझे लगता है कि इन नयनो पर कुछ भी लिखना-बोलना इतना सरल नही है..यह जो नैना है ....झुकी लज्जा के साथ मूक होकर एक उद्वेग  प्रकट करते है ..जैसे वृक्ष अपने फलो से लदकर हयावस भार से झुकते-झुकते लजाया हो ...जैसे गाँव-जबार मे एकाएक झुकी हुई बदरिया बड़े स्नेह से जल आचमन से  करती प्रतीत हुई हो ।
जैसे सागर शांत पड़ी तरंगों में ज्वार-भाटा आकर चला गया हो !

हाँ! यह जो तुम्हारे नैना है वह मेरे मन की भाषा बोलते है,मुझे विदित है वह तुम्हारा मुझे देख कल्पना करके बार-बार पलके झपकाना और खुद की आँखों से खुद को आश्वत करना कि प्रत्यक्ष को अब प्रमाण नही दिए जा सकते है ।

धनुष जैसी भृकुटियों के नीचे विद्यमान यह जो दो ज्ञानेन्द्रीय है न ...कभी बन्द होकर शांति से सपना नही देखती है।इनके सपने तो खुले चक्षुओं से चारो और दिग-दिगान्तर तक बड़े करीने से सजते है।
गीतकार ने लिखा था कि ..
"नैनो की ना मानियो ,नैना ठग लेंगे..!"
के स्थान पर....
"नैनो की यह बात नैना जाने रे.." 
से में बड़ी सहमति रखता आया हूँ,आखिर नैना ही तो वह भावना का केंद्र है जँहा से होकर खुशी और गम दोनों के भावना प्रवाह समान रूप से प्रस्फुटित होते है ।

मुझे कभी कभी महसूस होती है तुम्हारी पलको पर शबनम की वह बूंदे ..जैसे फूली हुई सरसो में कोई भंवर आकर इन मोतियों को न तोड़ ले जाये। आँखे ही तो वह तारा है जिसके तारे में अपना बना हुआ प्रतिबिम्ब हर कोई निहारने की तमन्ना किये रहता है ।
सुनो!
एक छोटी सी ख्वाहिश पलको पर आ बैठी है कि मुझे अशेष समय तक वह दो नैना अपने चक्षुओं से अपलक निहारने है....और बस निहारने है ।

मोहब्बत के भी कुछ राज होते हैं,
जागती आँखों में भी ख्वाब होते हैं!
जरूरी नही हैं कि गम में ही आँसू आएँ,
मुस्कुराती आँखों में भी सैलाब होते हैं!

बशीर बद्र की यह पंक्तिया एकाएक स्मरण हो आयी ।

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JVS.

राजा भलभद्र सिंह 'चहलारी'

यथोचित प्रणाम।  जो शहीद हुये है उनकी...... 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में,  अंग्रेजों के खिलाफ बहराइच जिले में रेठ नदी के तट पर एक निर...