जब कलम और कर्म दोनों खाली हो,
चल-जिंदगी में बहुत कुछ सबाली हों!
क्यों न खुद कोई तस्वीर उतारी जाये,
देखे औरो को खुदी को? गाली दी जाये!
तह पर तह लगाए कब तक जिये यारा,
शल्कों में छिपी शक्लें क्यों निकाली जाये!
अब तो परिंदों ने घरौंदे रखना छोड़ दिया,
चल दूर कंही दरिया में कस्ती उतारी जाये!
वक्त बहुत आये बहुत से निकलते जाएंगे
भूल की भूले चल भूलकर भूल डाली जाए !!
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