===चम्बल एक सिंह अवलोकन===
भाग-७२
★बागी गुरु गेंदालाल जी दीक्षित★
बटेश्वर वाह के 'मई' गाँव को सभी जानते हे,जाने भी क्यों न!चूँकि इसी कालिंदी से घिरे छोटे गाँव में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्व.अटलबिहारी बाजपेयी का जन्म स्थान हे। किन्तु इस पावन मारुभूमि की एक नीव की ईंट और हे जो कालांतर में स्मिर्ति से धुँधली होती जा रही हे और हम भूल जाते हे एक ऐसे महान क्रांतिकारी सूत्रधार गोलोक वासी पण्डित जी गेंदालाल दीक्षित जी को ।
इसी भूमि पर चम्बल के बागियों को 'क्रांति का गुरुमन्त्र' देने बाले इस चाणक्य सदृस् आचार्य के शिष्य थे प.रामप्रसाद तोमर 'बिस्मिल',अस्फाख् उल्ला खान,महावीर सिंह राठौर,ठाकुर रोशन सिंह लाहिड़ी,बरकत उल्ला खान,सेठ गयादीन प्रसाद के साथ ख्यात बागी मान सिंह राठौर,ठाकुर पंचम सिंह चौहान,बृह्मांनन्द 'बृह्मचारि जेसे बागी भी थे ।
एक समय था जब चम्बल में स्वम के मरते परिवार डूबते आत्मसम्मान के लिए लोगो बीहड़ का रास्ता अपनाया किन्तु उस रस्ते में बदले की भावना ज्यादा थी और इसी भावना को दीक्षित जी नया पथ दिया क्रांति का और इसी क्रोधक्रान्ति ने सेकडो डाके डाले। ब्रिटिस और सिंधिया फौजे मारी गयी तो ले चलते आपको इसी अद्भुत स्वप्न में जो क्रांति से प्रकट हुआ और क्रांति के लीन हो गया ...! जिस समय देश के लोगों को अंग्रेजों के अत्याचारों के विरुद्ध खड़ा करने की जद्दोज़हद चल रही थी, उस समय इन्होंने डकैतों को इकट्ठा कर अंग्रेज़ी सरकार के खिलाफ़ ‘शिवाजी समिति’ का गठन किया। उनके इस संगठन ने अंग्रेज़ी सरकार की नींद हराम कर दी थी।
पंडित गेंदालाल दीक्षित का जन्म 30 नवम्बर 1888 को उत्तर-प्रदेश के आगरा जिले के मई गाँव में हुआ। मात्र 3 वर्ष की आयु में ही अपनी माँ को खो देने वाले गेंदालाल का बचपन बिना किसी वात्सल्य और सुख-सुविधा के बीता। शायद इसी वजह से वे शरीर और मन दोनों से ही मज़बूत बन गए थे।
घर की आर्थिक परिस्थिति ठीक न होते हुए भी गेंदालाल ने किसी तरह दसवीं तक की पढ़ाई पूरी की। आगे पढ़ने की इच्छा तो थी, परन्तु घर के खर्चों में हाथ बंटाने के लिए उन्होंने उत्तर प्रदेश में औरैया जिले की डीएवी स्कूल में शिक्षक की नौकरी स्वीकार कर ली। इसी दौरान 1905 में हुए बंग-भंग के बाद चले स्वदेशी आन्दोलन का उन पर अत्यधिक प्रभाव पड़ा। क्रांति के इस दौर में गेंदालाल को एक ऐसी योजना सूझी, जो शायद ही किसीको सूझती! उस वक़्त डैकेतों का बड़ा प्रहार था। ये डकैत बहादुर तो बहुत थे, पर केवल अपने स्वार्थ के लिए लोगों को लूटते थे। ऐसे में गेंदालाल ने ऐसा उपाय सोचा, जिससे इन डकैतों की बहादुरी और अनुभव का फ़ायदा स्वतंत्रता की लड़ाई के लिए उठाया जा सकता था।
उन्होंने गुप्त रूप से सभी डकैतों को इकट्ठा कर अपनी ‘शिवाजी समिति’ बनाई और शिवाजी की ही भांति उत्तर-प्रदेश में ब्रिटिश अधिकारियों के खिलाफ़ गतिविधियाँ शुरू कर दी। पंडित गेंदालाल भले ही अपनी गतिविधियाँ चोरी-छिपे करते थे पर क्रांतिकारी नेताओं में वे धीरे-धीरे मशहूर होने लगे। उनकी बहादुरी के किस्से जब महान क्रांतिकारी पंडित रामप्रसाद बिस्मिल तक पहुंचे, तो उन्होंने गेंदालाल से अपने अभियान के लिए मदद मांगी।
गेंदालाल ने भी इस प्रस्ताव को सहर्ष स्वीकृति दे दी। और जल्द ही गेंदालाल की शिवाजी समिति के साथ बिस्मिल ने ‘मातृवेदी’ की स्थापना की। इस संस्था के काम करने का मुख्य केंद्र मैनपुरी था। इस बात का पूरा ध्यान रखा गया था कि इस केंद्र की किसीको कानो-कान ख़बर न हो पर दल के ही एक सदस्य दलपतसिंह अंग्रेज़ों का मुखबीर बन गया। इस गद्दार ने अंग्रेज़ों को यहाँ का पता दे दिया। ख़बर लगते ही अंग्रेज़ अधिकारियों ने इस अड्डे पर छापा मारकर, गेंदालाल और उनके कुछ साथियों को गिरफ़्तार कर लिया।
गेंदालाल को अपने बाकी साथियों से अलग कर, आगरा के किले ले जाकर कड़ी निगरानी में रखा गया। अंग्रेज़ उनसे अन्य लोगों का पता उगलवाने का भरसक प्रयास कर रहे थे।
उधर बिस्मिल ने अपने इस क्रांतिकारी साथी को मुक्त कराने की योजना बनानी शुरू कर दी थी। एक दिन गुप्त रूप से किले में आकर बिस्मिल ने गेंदालाल से मुलाकात की।
इन दोनों ने संस्कृत में बात की ताकि सिपाहियों को कोई शक न हो और गेंदालाल की जेल से फ़रार होने की योजना बनाई। योजना के अनुसार गेंदालाल ने पुलिस को सब कुछ बताने के लिए हामी भर दी। बयान देने के लिए उन्हें आगरा से मैनपुरी भेज दिया गया, जहाँ उनके बाकी साथियों को रखा गया था।
यहाँ पहुँचते ही गेंदालाल ने एकदम से पैंतरा बदला और पुलिस से नाटक करते हुए कहा कि ‘इन लड़कों को क्या पता, मैं इस कांड का सारा भेद जानता हूँ।’ पुलिस उनके झाँसे में आ गयी और उन्हें क्रांतिकारियों के साथ उसी बैरक में बंद कर दिया गया।बाकायदा चार्जशीट तैयार की गयी और मैनपुरी के स्पेशल मैजिस्ट्रेट बी॰एस॰क्रिस की अदालत में गेंदालाल दीक्षित सहित सभी नवयुवकों पर अंग्रेज़ो के विरुद्ध साजिश रचने का मुकदमा दायर किया गया। इस मुकदमे को भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास में मैनपुरी षड्यन्त्र के नाम से जाना जाता है।
मुकदमा अभी चल ही रह था कि गेंदालाल ने एक और चाल चली। उन्होंने जेलर को यकीन दिला दिया कि क्रांतिकारियों के ख़िलाफ़ गवाही देने वाला सरकारी गवाह उनका अच्छा दोस्त है और अगर उन्हें इस सरकारी गवाह के साथ एक ही बैरक में रख दिया जाये, तो कुछ और षड्यन्त्रकारी गिरफ़्त में आ सकते हैं।
जेलर ने गेंदालाल की बात का विश्वास करके उन्हें सी॰आई॰डी॰ की देखरेख में सरकारी गवाह के साथ हवालात में भेज दिया। थानेदार ने एहतियात के तौर पर गेंदालाल का एक हाथ और सरकारी गवाह का एक हाथ आपस में एक ही हथकड़ी में कस दिया ताकि रात में वे हवालात से भाग न सकें। लेकिन गेंदालाल को कहाँ कोई जेल और हथकड़ी रोकने वाली थी। वे खुद तो जेल से फ़रार हुए ही साथ में उनके सरकारी गवाह को भी भगा ले गये। पूरी ब्रिटिश सरकार हका-बक्का रह गयी कि कैसे एक मामूली-सा स्कूल का मास्टर उनकी पूरी पुलिस फ़ोर्स को चकमा दे गया। एक निजी शोध अनुसार सबलगढ़ से ग्वालियर आते ब्रिटिस-सिंधिया खजाना लूट के 'प्रद्युमपुर जमीदार' प्रद्युम्न सिंह और उनके द्वारा की गयी लूट और जेल तोड़ने से भी शोधकर्ता इन्हें जोड़ते हे किन्तु 1857 और 1911 में काफी अंतराल हे तो सबलगढ़ खजाना लूट में दीक्षित जी की सहभागिता शिद्ध नहीं होती हे ।
ब्रिटिश पुलिस ने हर एक हथकंडा आजमाया लेकिन कभी भी गेंदालाल को पकड़ न पाई। इस घटना के बाद, गेंदालाल दिल्ली पहुंचे और वहां अज्ञात नाम से आजीवन क्रांतिकारियों की मदद करते रहे।देश की सेवा में बिना रुके और बिना थके काम करने वाले इस क्रांतिकारी को आख़िर क्षय रोग ने हरा दिया और 21 दिसंबर 1920 को उन्होंने आख़िरी सांस ली।
भारत की आज़ादी की नींव रखने वाले ऐसे न जाने कितने ही क्रांतिकारी हैं, जिनका नाम कभी इतिहास हम तक न पहुंचा पाया। परन्तु देश सदा इन अनसुने, अनदेखे, गुमनाम क्रांतिकारियों का ऋणी रहेगा । नबम्बर में प्रकट हुए दिसम्बर में महाप्रयाण हुए इस महान क्रांति गुरु,एकात्म चिंतक,श्रीमद्भगवद्गीता के मर्मज्ञ और महान नीतिज्ञ को मेरा कोटिस नमन ...🙏
शब्द श्रधांजलि 💐
वन्दे मातरम् 🇮🇳
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जितेंद्र सिंह तोमर '५२से'
चम्बल मुरैना मप्र .