शनिवार, 8 सितंबर 2018

अनुभव

#अनुभव                  (कहानी)
‘‘पिया- पिया,’’ पापा की आवाज सुनकर पिया की निन्द्रा टूटी।‘‘जी पापा’’ कहती हुई वह सीढ़ियाँ उतरने लगी, किन्तु विचारों की माला अभी भी उसके मन में बनती-उधड़ती जा रही थी।
सुबह ही तो उसके ससुर से उसकी तीखी बहस हुई थी, ‘‘अरे ये बुज़ुर्ग हमारे युवा दृष्टिकोण को समझते ही नहीं, सिर्फ सुनते हैं और नकार देते हैं।
‘‘ पिया की मित्र फोन पर उसे कहती है कि तू तो अपनी बात पर अटल रह, ये तो बुज़ुर्ग हो चले हैं व इनका समय गुज़र गया है अब तो हर व्यवस्था नयी है।

पिया एक संयुक्त परिवार से शादी होकर एक ऐसे घर में आई जिसमें केवल वो, उसके पति, देवर व उसके ससुर थे। सास को गुज़रे बरसों हो चले थे। बरसों बाद जब बहू की चूड़ी घर में छनकी तो सुख की हँसी हर ओर बिखरने लगी।
ससुर का व्यक्तित्व अत्यन्त प्रभावशाली था, वे अति उच्च पद से सेवानिवृत हुए थे तथा सम्पूर्ण परिवार के एकछत्र स्वामी थे।
परिवार में आई बहू से अब उनका परिवार एक बार फिर पूर्ण हुआ है इस बात से वह अत्यन्त प्रसन्न थे, किन्तु जब से पिया ने अपने पति के साथ आपसी मुद्दों पर स्वयं निर्णय लेना शुरू किया तब से उसके ससुर दुःखी रहने लगे।

पिया और उसके पति को उनके ख़राब मूड में उनकी उदासी साफ़ दिख रही थी, किन्तु बात कैसे छेड़ी जाये यह समझ नहीं आ रहा था। एक दिन पिया ने निर्णय लिया कि वे अपने ससुर से उनके ख़राब मूड का कारण पूछेगी, क्योंकि एक पिया ही थी जिससे उसके ससुर हर बात बाँटते थे।
‘‘पापा, आपको क्या कोई बात परेशान कर रही है?’’पिया ने जब सोफे पर बैठते हुए पूछा तो ससुर नेअपना झुका सर ना में हिला दिया। मगर दो मिनट के मौनके बाद अचानक बोले - ‘‘बेटा, हम लोग अब बूढ़े हो गये हैं, ज़िन्दगी में बहुत दुःख देखा, बहुत सुख भी भोगा।
तुम्हारी सास के साथ ये परिवार बनाया और जब वे हमें बीच मझधार में छोड़कर ईश्वर के पास चली गई, तब हर सुख छोड़ अपने बच्चों को पाला और इस क़ाबिल किया आज वे समाज में प्रतिष्ठित हैं।
हमने तुम्हें अपने निर्णय स्वयं लेने के क़ाबिल बना दिया है किन्तु क्या हम इतनी अपेक्षा भी नहीं कर सकते कि किसी भी निर्णय को लेते समय हम बुज़ुर्गों से भी पूछ लिया करो?
’’पिया एक पल को तो चुप रह गई फिर अचानक बोली –"लेकिन पापा हमने आपको दो-तीन दिन पहले बताया तो थाना कि हम घर में पार्टी देने की सोच रहे हैं।"ससुर थोड़ा नाराज़ हो कर बोले – "हाँ जाते-जातेकह दिया था, हो सकता है पार्टी रखें। अरे भई, ऐसे हीपार्टी थोड़े ही ना हो जाती है। हमने हज़ारों पार्टियाँ दी हैं, हम जानते हैं इनविटेशन, तैयारी और कई ऐसे बिन्दु जो यदि छूट जायें तो एक मिनट में पार्टी ख़त्म हो जाती है।
"पिया तुनक कर बोली – "अब आपके ज़माने गये पापा,अब तो हर चीज़ के लिए ‘‘प्लैनर’’ होते हैं जो सब काम कर देते हैं।"यह सुनकर ससुर अचानक गुस्सा हो गये – "क्या मतलब है हमारे ज़माने गये का, हम बूढ़े हो गये तो क्या ख़त्म हो गये?"पिया भी गुस्से से बोली – "पापा, आप तो समझ हीनहीं रहे हैं, हम अब बच्चे नहीं रहे जो आपकी अंगुलीपकड़ कर हर निर्णय लें।"यह कहकर पिया पैर पटकती अपने कमरे में बजते अपनी फ्रेंड का फोन उठाने चल पड़ी और उसे सारी राम कहानी सुनाई।
तभी छत से उसके पति नीचे आये और पूछा क्या बातहो रही थी दोनों ससुर-बहू के बीच। पिया ने सारी बातपति को बताई। पति मुस्कुराते हुए बात सुनने लगे। कहते-कहते पिया को अहसास होने लगा कि वो अपने ससुर से वैसे ही बात करके आई है जैसे एक विद्रोही नव युवा अपनी स्वतंत्रता पर लगाम लगाने पर करता है औरयदि उसके अपने बच्चे बीस साल बाद उससे ऐसे बात करें तो उसे कैसा लगेगा?यह प्रश्न मन में कौंधते ही उसे ऐसा लगा मानो वह अपने ससुर के स्थान पर बैठी हो और उसका पुत्र उससे कह रहा हो – "माँ, अब आपका ज़माना तो गया, अब हमबच्चे नहीं रहे जो हर निर्णय आपकी अंगुली पकड़ कर करेगें।"पिया की आँखों में ग्लानी के आँसू आये और रुक गये। वह फौरन उठी और सर झुकाये अपने ससुर से बच्चों की तरह बोली - ‘‘क्या पापा, आप भी छोटे बच्चे की तरह रूठ जाते हो। आई एम सॉरी, पापा।"यह कह कर उसने अपने ससुर के कांपते हाथ पर अपना हाथ रखा।
ससुर की आँखों से आँसू बहने लगे, किन्तु रूठे बच्चे की तरह हँसते हुए बोले, ‘‘तू यूँ मुझे ना मना। मुझे पता है, अब हमारा ज़माना बीत गया है, मगर बेटा, हमारे पास सीखों का वो खज़ाना है जो हज़ारों दुःख, ठोकरें और धोखे खा कर हमने जमा किया है। हम नहीं चाहते तुम उनसे गुज़रो, तुम सब बहुत निपुण हो, गुणी हो, हमें तुम पर पूरा विश्वास है किन्तु जब हालात ऐसे बने कि रास्ते समझ ना आये तो हमारे इस खज़ाने से एक सीख का दीपक जला लेना और याद रहे तो हमारे लिए दुआ देना।
"पिया की आँखो से आँसू झरने लगे।सच ही तो है कल उसे भी तो उम्र के इसी पायदान पर आ खड़ा होना है और यदि आज उसने अपने बुज़ुर्गों कासम्मान नहीं किया, उनके सम्पूर्ण उम्र में इकठ्ठे किये अनुभवों के खज़ाने को नहीं आत्मसात् किया तो एक दिन समयचक्र फिर से घूमेगा और ऐसा ना हो कि उसकेबच्चे उसे यहीं खड़े होकर कहें कि - आपका ज़माना बीत गया है।
नहीं, पिया ख़ुश थी कि उसने समयचक्र को एक सकारात्मक दिशा दी है क्योंकि उसके बच्चे पापा से पूछ रहे थे कि - दादा मम्मी को बहुत प्यार करते हैंना?

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