===चम्बल एक सिंह अवलोकन===
भाग-२८
★भक्ति गाथा★
यु तो अपनी चम्बल में अशेष किस्से सजीव हे।कुछ दनदनाती गोलियों के तरह आते हे और हम हालिया स्मरण करके जल्द भूल जाते हे।किन्तु कुछ अविस्मरणीय किस्से भी हे जो गोलियों ,कडबाहटो,जख्मो,दुसमनियो से दूर अनन्त ईश्वर के साक्षात् होने का स्वप्रमान हे ।
ऐसा ही एक वाक्या हे रजोधा ग्राम पंचायत के अंतर्गत आने बाले गाव #अटागाँव का।पनिहल मिटटी से बने हुए घरो को चारो तरफ से आछ्यादित करते अनमोल बनस्पति के वृक्षयः और आपसी सोहार्द का प्रतीक ये गाँव भी सामन्ती सोच से निकल ही रहा था की अपवाद स्वरूप एक भूमि हड़प का सड़यन्त्र सबके सामने था ।
इस वाकये को जान्ने के लिए हमे आज से करीब 45 वर्ष पुर्व का सफर तय करना होगा।
अटागाँव के एक परिवार में तीन भाई रहा करते हे सोवरन सिंह ,अहिवरन सिंह और रामबरन सिंह (पीछे के दो नाम परिवर्तित हे ) सोवरन सिंह बाल्यकाल से गाएँ और खेतो में मस्त श्रीकृष्ण भजनों में लींन रहा रहा करते थे बही छोटे दोनों भाई अपनी कार्यकुशलता,फुर्ती,बुद्धिमत्ता और धूर्तता के लिए जाने जाते ते।समस्त गाँव में ऐसा कोई न था जो अहिवरन और रामवरण की बुद्धि और कुटिनीति का लोहा न मानता हो।कुशल बुद्धि सदैव विद्यार्जन में निपुण होती हे और इसी बजह अतिशीघ्र ही उन्होंने अपने बड़े भाई की उपस्तिथि को नगण्य कर दिया।परिवारी-रिश्तेदारी सब जगह दोनों भाइयो की पूछ परख जबकि सोवरन जी अपनी गाय चराने और कुवारी के बेहदो में अनन्य सखा कृष्ण को खोजते रहते।मनोस्तिथि ऐसी जेसे बाबले हो ,सिर पे मुडाचा,हाथ दण्डी और वही कृष्ण भक्ति की पगडंडी ही उनका जीवन था।
जैसा की समय अनुकूल होता हे सोवरन जी का भी पाणिग्रहण हुआ।घरबाले समझते थे की सम्भवत विवाहोप्रांत परिवर्तन आये।जैसी की हर जगह भ्रान्ति हे की शादी के बाद लड़के सुधर जाएंगे किन्तु ये उपाय भी निष्फल रहा और सोवरन जी जीवन चर्या में तिल मात्र परिवर्तन न हुआ।घर परिवार बालो ने मुर्ख बाबला समझ उन्हें उपेक्षित कर दिया ।
समय के पंखो के साथ परिवार में वृद्धि हुई और जिम्मेदारियो में वृद्धि तनिक न हुई।सोवरन जी अपनी जिम्मेदारियो को समझते थे किन्तु 'मेरो मन अनन्त कहा सुख पावे' की अनन्त भक्तिपाश से सहज निकल पाना क्या सम्भव होता हे ..!!
जब बो कहते हे की भाई को भाई प्रति उकसाने बाली भार्यायै हर समय एक ही बुद्धि की परम्परागत वाहिकाएं होती हे।और ऐसा ही सोवरन सिंह साथ हुआ।उन्हें परिवार से अलग कर दिया...!पेत्रिक जमीन के त्रि असमान भाग हुए ...!!सबसे निम्न स्तर की जमीन सोवरन सिंह को दी गयी किंतु आश्चर्य इस बात का की अतिसामान्य से निम्न स्तर का कार्य करने बाले सोवरन जी के यहां धन-धान्य जेसे 'बंशी बारे' की कृपा से वरसात करता।किन्तु गाय और कृष्ण भजनों के प्रेमी सोवरन सिंह मुख के पर रहष्य भरी मुस्कान साथ एक शब्द रहता हे "मेरो तो बंशीबारो हे, ओरु कोउ कहा करे.!"
समय पंख लगा कर उड़ता जाता हे ,भाइयो ने नूतन युक्ति खोजी की सोवरन दादा के क्यों न ७बीघे खेत को अपने नाम कर लिया जाए जिसमे उन अकेले की सबसे ज्यादा फसल होती हे।पुलिस-पटवारी का जुगाड़ बिठाया गया।सोवरन सिंह को बाबला और निःशनतांन ,अवेवाहिक ठहरा कर ७बीघे जोत लिए गए ....!
अब सोवरन जी का चित्त कुछ जागृत हुआ की अरे मेरी और बंशीवारे की गाये अब कहा करेगि ,में किस बिधि उससे मिल पाउँगा,कैसे उसकी मधुर बंशी की धुन में खो पाउँगा........!! हाय मेरे 'बंशी बारे' का साथ छूट जाएगा ....! बीहड़ का एकाकी यही हिस्सा तो हे जिसकी घास कितनी गाये रोज खाती हे किन्तु एक -एक तृण की पूर्ति एक रात्रि में करने बाला ये खेत दुस्ट भाइयो ने कब्जा लिया ......!!!!
हाय बंशीबारे अब तू ही कोई राह दिखा ..!मुझे खेतो की नहीं तेरी मुरली की पड़ी हे, की अब ये न मिलेगीे सुनने को ...!
सहसा पार्श्व से मुरली की मीठी स्वर लहरी सुनाई देती हे और सोवरन जी उसकी तरफ आकृष्ट हो जाते हे।
"आहा बंशीबारे तुम आ गए ,ये देखो मेरे भाइयो ने अपनी गोचर की जमीन हड़प ली अब कैसे अपनी गाये चरेंगी और कैसे हम साथ-साथ एक पोटली से 'कलेऊ' करेंगे ,शायद अब तुम बापस जल्दी चले जाओगे। एक वर्ष में सिर्फ४माह के लिए ही तो आते हो वृन्दावन से अपनी गाये लेकर ...!"
प्रतिउत्तर मे जेसे किसी ने एकाएक शांत पड़े 'जलतरंग' को छेड दिया हो,सेकड़ो बसन्तो से भँवरो को बाबला कर दिया हो,पुरवाई में चन्दन घोल दिया हो और पपीहे ने "पीहू-राग" गादिया हो के सदृश्य शब्द निकले " शंभु दादा तुम न्यायालय जाइए,किसी को मध्यस्त किये बिना मेरे साथ चलिए।मुरैना में अपने 'दाऊभैया' का घर भी हे उनसे मिलकर न्यायालय के माध्यम से अपनी खेती पुनः ले लेंगे ।"
सोवरन......! सोवरन.....!!सोवरन.......!!!
की आवाज और किसी के पुकारने पर उनकी तन्द्रा भंग हुयी।
आंय.....!!!
में अपने घर पे स्वप्न देख रहा था की जागृत था ....!!
अतिविष्मयकारी नजरो से घर मुहाने खेल रहे बच्चों की करतल ध्वनि और बालसुलभ अठखेलियों के समक्ष वो उठ खड़े हुए और निकल पड़े मुरेना की ओर......!
मुरैना न्यायालय में तहरीर लिखाई जाती हे।अब मुंशी द्वारा 'गवाह' का पूछा जाता हे तो सदैव की तरह एक शब्द निकलता हे 'बंशीबारो' और निकल आते हे घर की तरफ ।
अगले दिवस जब फरियादी का नाम दरवान उद्घोषित करता हे..!कचहरी से सोवरन जी नदारद थे ।
"बो तो पदयात्री हे और नियत समय पर पहुचने में बिलम्ब तो होगा ही ,आप न्याधीश महोदय के समक्ष मुझे ले चलिए ,'सम्भु दादा' जिन्हें आप सोवरन सिंह तोमर के नाम पुकार रहे थे उनका गवाह में ही 'बंशीबारो-बासुदेव-श्रीकृष्ण हु।"
गवाही दी जाती हे न्यायाधीश और मुंशी मात्र किसी अदृश्य शक्ति के कारण मन्त्रमुग्ध से मात्र श्रोता हे और फैसला ७बीघे जमीन सोवरन सिंह के नाम लिख देते हे ।
कुछ अंतराल बाद सोवरन सिंह अनमने भाव से दरवान से पूछते हे की भैया मेरा नाम निकल तो नहीं गया !मुझे बिलम्ब हो गया आने में ..।
दरवान कहता हे सोवरन सिंह तोमर तुम्हारा ही नाम हे न तो ये लीजिये आदेश आपकी गवाही हो चुकी हे और आपके गवाह अभी-अभी वृन्दावन परिक्रमा को जाने की कहकर ये पत्र मुझे आपको देने की बोल गए हे ।
सोवरन जी पत्र देखा और आँखों से अश्रुधार बह निकली "वाह बंशीबारे तू मेरे साथ भी था और गवाही भी दे गया..!",में सामान्य गवारिया समझता रहा तुझे तू तो वास्तविक 'बंशीबारो' निकला.......!!
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आज भी सोवरणसिंह जी नगेपांव सिर्फ पदयात्रा करते हे।और बंशीबारे बाबा के नाम से पहिचाने जाते उनके वास्तबिक नाम से सम्भवतः ५%लोग ही परिचित हे।उनकी जीवन शैली भी अद्भुत हे बिलकुल विरक्तो की तरह न तन का होश न मन का उन्हें खोज हे तो सिर्फ 'बंशीबारे की' .........🙏🚩🙏
बोलिये भक्त बतसल भगवान बंशीबारे श्रीकृष्ण जी की जय !!
जितेन्द्र सिंह तोमर'५२से'
वृजभूमि तंवरघार चम्बल