संछिप्त परिचय
तोमर राजवंश -
तोमर राजवंश का मूल उद्गम महाभारत के योद्धा पाण्डव अर्जुन से है, भगवान श्रीकृष्ण के फुफेरे भाई तथा बहनोई , एवं अनन्य सखा अर्जुन एवं सुभद्रा के पुत्र अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ से जन्मे महाराजा परीक्षित एवं उनके पुत्र जन्मेजय के वंशज ।
चन्द्रवंश
1 मनु | इला | पुरुरवस् | आयु | नहुष | ययाति | पूरु | जनमेजय | प्राचीन्वन्त् | प्रवीर | 11 मनस्यु | अभयद | सुधन्वन् | बहुगव | संयति | अहंयाति | रौद्राश्व | ऋचेयु | मतिनार | तंसु | 43 दुष्यन्त | भरत | भरद्वाज | वितथ | भुवमन्यु | बृहत्क्षत्र | सुहोत्र | हस्तिन् | 53 अजमीढ | नील | सुशान्ति | पुरुजानु | ऋक्ष | भृम्यश्व | मुद्गल | 61 ब्रह्मिष्ठ | वध्र्यश्व | दिवोदास | मित्रयु | मैत्रेय | सृञ्जय | च्यवन | सुदास | संवरण | सोमक | 71 कुरु | परीक्षित १ | जनमेजय | भीमसेन | विदूरथ | सार्वभौम | जयत्सेन | अराधिन | महाभौम | 81 अयुतायुस् | अक्रोधन | देवातिथि | ऋक्ष २ | भीमसेन | दिलीप | प्रतीप | शन्तनु | भीष्म | विचित्रवीर्य | धृतराष्ट्र | 94 पाण्डव | अभिमन्यु | परीक्षित | जनमेजय
जन्मेजय
जन्मेजय द्वारा विश्व विख्यात सर्प यज्ञ कर सर्प प्रजाति को ही वंश नाश कर समाप्त करने हेतु आयोजित यज्ञ और उसमें भगवान श्री हरि विष्णु द्वारा स्वयं आकर सर्प जाति की रक्षा तथा तोमर वंश के लोगों को सर्प द्वारा न डसने तथा डसने पर असर न होने के वरदान की त्रिवाचा की कथा जगत प्रसिद्ध है ।
दिल्ली
इसी राजवंश के आगे बढ़ते इन्द्रप्रस्थ दिल्ली के
तोमर राजवंश -
तोमर राजवंश का मूल उद्गम महाभारत के योद्धा पाण्डव अर्जुन से है, भगवान श्रीकृष्ण के फुफेरे भाई तथा बहनोई , एवं अनन्य सखा अर्जुन एवं सुभद्रा के पुत्र अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ से जन्मे महाराजा परीक्षित एवं उनके पुत्र जन्मेजय के वंशज ।
चन्द्रवंश
1 मनु | इला | पुरुरवस् | आयु | नहुष | ययाति | पूरु | जनमेजय | प्राचीन्वन्त् | प्रवीर | 11 मनस्यु | अभयद | सुधन्वन् | बहुगव | संयति | अहंयाति | रौद्राश्व | ऋचेयु | मतिनार | तंसु | 43 दुष्यन्त | भरत | भरद्वाज | वितथ | भुवमन्यु | बृहत्क्षत्र | सुहोत्र | हस्तिन् | 53 अजमीढ | नील | सुशान्ति | पुरुजानु | ऋक्ष | भृम्यश्व | मुद्गल | 61 ब्रह्मिष्ठ | वध्र्यश्व | दिवोदास | मित्रयु | मैत्रेय | सृञ्जय | च्यवन | सुदास | संवरण | सोमक | 71 कुरु | परीक्षित १ | जनमेजय | भीमसेन | विदूरथ | सार्वभौम | जयत्सेन | अराधिन | महाभौम | 81 अयुतायुस् | अक्रोधन | देवातिथि | ऋक्ष २ | भीमसेन | दिलीप | प्रतीप | शन्तनु | भीष्म | विचित्रवीर्य | धृतराष्ट्र | 94 पाण्डव | अभिमन्यु | परीक्षित | जनमेजय
जन्मेजय
जन्मेजय द्वारा विश्व विख्यात सर्प यज्ञ कर सर्प प्रजाति को ही वंश नाश कर समाप्त करने हेतु आयोजित यज्ञ और उसमें भगवान श्री हरि विष्णु द्वारा स्वयं आकर सर्प जाति की रक्षा तथा तोमर वंश के लोगों को सर्प द्वारा न डसने तथा डसने पर असर न होने के वरदान की त्रिवाचा की कथा जगत प्रसिद्ध है ।
दिल्ली
इसी राजवंश के आगे बढ़ते इन्द्रप्रस्थ दिल्ली के
राजसिंहासन पर महाराजा अनंग पाल सिंह तोमर सिंहासनारूढ़ हुये (736 AD), आगे महाराजा अनंगपाल सिंह तोमर III ने दिल्ली से आकर चम्बल नदी के किनारे ऐसाह नामक स्थान (वर्तमान में मुरैना जिला ) पर अपनी नई राजधानी बनाई(1190 A.D.)
राजचिह्न एवं वंश चिह्न (तोमर राजवंश)
*गोत्र – व्याघ्रप्रद(वैयासर, व्यास्स्त्र ,बोली अपभ्रसो के कारण*)
इष्ट देव - श्रीकृष्ण, भगवान शिवजी
कुलदेवता - श्रीकृष्ण, भगवान शिवजी
शाखा – माखधनी,
वंश – चन्द्रवंश ,
कुलदेवी – योगेश्वरी,
देवी – चिल्हासन (वर्तमान में कालका देवी के नाम से प्रसिद्ध हैं, इनकी चील पक्षी की सवारी है- इनका मंदिर अनंगपुरी दिल्ली में है, यह मंदिर महाराजा अनंगपाल सिंह तोमर ने बनवाया था),
राजचिह्न – गौ बच्छा रक्षा (गाय बछड़ा की रक्षा) – यह राजचिह्न प्रयागराज में स्थापित है,
वंश वृक्ष चिह्न – अक्षय वट- यह चिह्न प्रयागराज में स्थापित है,
माला – रूद्राक्ष की माला,
पक्षी- गरूड़,
राज नगाड़ा – रंजीत (रणजीत),
तोमर राजवंश पहचान नाम- इन्द्रप्रस्थ के तोमर,
राज वंश एवं वंश कुल पूजा- लक्ष्मी नारायण,
आदि खेरा (खेड़ा) (मूल खेड़ा) – हस्तिनापुर,
आदि गद्दी (आदि सिंहासन) – कर्नाटक (तुगभद्रा नदी के किनारे तुंगभद्र नामक स्थान पर महाराजा तुंगपाल) ,
वंश एवं राज शंख – दक्षिणावर्ती शंख,
तिलक – रामानन्दी,
राज निशान- चौकोर हरे झण्डे पर चन्द्रमा का निशान,
पर्वत – द्रोणांचल,
गुरू – व्यास,
राजध्वज – पंचरंगी,
नदी- गोमती,
मंत्र – गोपाल मंत्र,
हीरा - मदनायक ( इसे बाद में मुस्लिमों द्वारा कोहेनूर कहा गया – यह हीरा अब जा चुका है) ,
मणि – पारसमणि,
राजवंश का गुप्त चक्र – भूपत चक्र,
यंत्र – श्रीयंत्र,
महाविद्या – षोडशी महाविद्या
राजचिह्न एवं वंश चिह्न (तोमर राजवंश)
*गोत्र – व्याघ्रप्रद(वैयासर, व्यास्स्त्र ,बोली अपभ्रसो के कारण*)
इष्ट देव - श्रीकृष्ण, भगवान शिवजी
कुलदेवता - श्रीकृष्ण, भगवान शिवजी
शाखा – माखधनी,
वंश – चन्द्रवंश ,
कुलदेवी – योगेश्वरी,
देवी – चिल्हासन (वर्तमान में कालका देवी के नाम से प्रसिद्ध हैं, इनकी चील पक्षी की सवारी है- इनका मंदिर अनंगपुरी दिल्ली में है, यह मंदिर महाराजा अनंगपाल सिंह तोमर ने बनवाया था),
राजचिह्न – गौ बच्छा रक्षा (गाय बछड़ा की रक्षा) – यह राजचिह्न प्रयागराज में स्थापित है,
वंश वृक्ष चिह्न – अक्षय वट- यह चिह्न प्रयागराज में स्थापित है,
माला – रूद्राक्ष की माला,
पक्षी- गरूड़,
राज नगाड़ा – रंजीत (रणजीत),
तोमर राजवंश पहचान नाम- इन्द्रप्रस्थ के तोमर,
राज वंश एवं वंश कुल पूजा- लक्ष्मी नारायण,
आदि खेरा (खेड़ा) (मूल खेड़ा) – हस्तिनापुर,
आदि गद्दी (आदि सिंहासन) – कर्नाटक (तुगभद्रा नदी के किनारे तुंगभद्र नामक स्थान पर महाराजा तुंगपाल) ,
वंश एवं राज शंख – दक्षिणावर्ती शंख,
तिलक – रामानन्दी,
राज निशान- चौकोर हरे झण्डे पर चन्द्रमा का निशान,
पर्वत – द्रोणांचल,
गुरू – व्यास,
राजध्वज – पंचरंगी,
नदी- गोमती,
मंत्र – गोपाल मंत्र,
हीरा - मदनायक ( इसे बाद में मुस्लिमों द्वारा कोहेनूर कहा गया – यह हीरा अब जा चुका है) ,
मणि – पारसमणि,
राजवंश का गुप्त चक्र – भूपत चक्र,
यंत्र – श्रीयंत्र,
महाविद्या – षोडशी महाविद्या
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