गुरुवार, 23 फ़रवरी 2017

भारतीय विसंगति

आज भारत क्या हे ......?
कही राजनेतिक दलों के कारण  खंड खंड होता हुआ ...!!
अगर गहरी दृष्टि और विवेचनात्मक पहलू पर गोर करे विश्व  गुरु महान आर्यावत वर्तमान में आंतरिक रूप से विखण्डित होता जा रहा हे ।
भले ही दंभ भरते रहे किन्तु वास्तविकता आज टुकड़े होती मानवता और खण्डित होते समाज ,धुएं में उड़ती अश्लीलता पर आकर स्थिर हो जायेगी ।

कभी मनीषियों के देवलोक कहा जाने वाला भारत आज अपनी संस्कृति से पल्ला छाड़ छद्म आधुनिकता के नाम पर टकेसेर क्रय होता हुआ मिल जाएगा ।

आत्मबोध की समाप्ति हो रही हे ,एक दूजे की प्रतिस्पर्धा में हम दिन रात भाग ही तो रहे हे । भागते -भागते जीर्ण होने पर भी दम्भ होने पर भी श्रेष्ठ बनने की बजाय दिखाने पर केंद्रित हुए अहम को कभी पकड़ नहीं सकते ।
एक बैर भाव जो भूलने की कोशिश की जाय  समय के जख्म भरने से पहले कण कण विखेराणे के फिर 3 ,4 वर्ष में फिर से हम फला फला दल के साथ होने की बजह से बिखरते ही रहे ।
अगर हम आत्मा से सोचे की कोनसा दल लोकहित सोचता हे  ? शायद भारतीय गणतंत्र न दिखकर एक बहुत बड़ी सत्ता भोगियों की फ़ौज दिखेगी । जिसे सिर्फ सत्ता चाहिये किसी भी कीमत पर मिले ।

हम न चाहते हुए भी भयंकर मकड़ जाल के शिकार हुए जिससे न निकला पाना मुश्किल हे ।नामुमकिन नहीं !!
देश का जो वर्ग ऊँची सोच रखता हे बो आजकल की खाजनीति की लगाईं हुई बेड़ी के कारण पंगु कर दिया  ।
देश की न्याय व्यवस्था सिर्फ अगली दिनाक और झुठो के गड़े गढ़ जेसी प्रतीत होती हे ।भारत ही एक इकलौता ऐसा देश हे जिसमे जीवित इंसान को जीवित होने के लिए मुर्दे सरकारी कागज के द्वारा जीवित होने का प्रमाण देना पड़ता हे ।
प्रतिभाये शोशल मिडिया पर मिलजाएंगी जिनकी दूरदृष्टा सोच सिर्फ चन्द शब्दों में काँप रही होती हे । जबकि घसखोदे मलाई चाट रहे होते हे ।

किसी संमय में भारत कभी विल्व फल की तरह हुआ करता था । जहां मर्यादाओ का कठोर प्रथम आवरण रूपी रक्षाकवच हे ।तदुपरांत असंख्य औषिधय फल मूल की मधुरता ।
बही आज भारत एनारनि फल की तरह हो जो देखने में सुंदर किन्तु हाथ भी श्पर्स का फल कडव और विषयुक्त होना हे ।

ऋषि मुनियो गौरव गाथा वाले देश को आज मानसिक वेश्यालय में जीवन के पथप्रदर्शक और प्रेरणादायक इंसान दिख जाते हे उस देश की गरिमा धूमिल न होगी तो क्या होगी ?

मंथन यह नहीं की त्रुटि कहा हुई पर हो ?
मन्थन त्रुटि क्यों नहीं हुई पर आकर रुक जाता हे ।

खेर अपना क्या नंगे आये नंगे जाएंगे । जो कुछ पहनने का कर्म जीवन मध्य से जुड़ा हे जुड़ा रहेगा
                  
                🚩  जय भवानी 🚩

बुधवार, 22 फ़रवरी 2017

संछिप्त परिचय चंद्रवंशीय क्षत्रिय तोमर राजवंश

संछिप्त परिचय
तोमर राजवंश -

तोमर राजवंश का मूल उद्गम महाभारत के योद्धा पाण्‍डव अर्जुन से है, भगवान श्रीकृष्‍ण के फुफेरे भाई तथा बहनोई , एवं अनन्‍य सखा अर्जुन एवं सुभद्रा के पुत्र अभिमन्‍यु की पत्‍नी उत्‍तरा के गर्भ से जन्‍मे महाराजा परीक्षित एवं उनके पुत्र जन्‍मेजय के वंशज ।

चन्द्रवंश

1 मनु | इला | पुरुरवस् | आयु | नहुष | ययाति | पूरु | जनमेजय | प्राचीन्वन्त् | प्रवीर | 11 मनस्यु | अभयद | सुधन्वन् | बहुगव | संयति | अहंयाति | रौद्राश्व | ऋचेयु | मतिनार | तंसु | 43 दुष्यन्त | भरत | भरद्वाज | वितथ | भुवमन्यु | बृहत्क्षत्र | सुहोत्र | हस्तिन् | 53 अजमीढ | नील | सुशान्ति | पुरुजानु | ऋक्ष | भृम्यश्व | मुद्गल | 61 ब्रह्मिष्ठ | वध्र्यश्व | दिवोदास | मित्रयु | मैत्रेय | सृञ्जय | च्यवन | सुदास | संवरण | सोमक | 71 कुरु | परीक्षित १ | जनमेजय | भीमसेन | विदूरथ | सार्वभौम | जयत्सेन | अराधिन | महाभौम | 81 अयुतायुस् | अक्रोधन | देवातिथि | ऋक्ष २ | भीमसेन | दिलीप | प्रतीप | शन्तनु | भीष्म | विचित्रवीर्य | धृतराष्ट्र | 94 पाण्डव | अभिमन्यु | परीक्षित | जनमेजय
जन्‍मेजय

जन्‍मेजय द्वारा विश्‍व विख्‍यात सर्प यज्ञ कर सर्प प्रजाति को ही वंश नाश कर समाप्‍त करने हेतु आयोजित यज्ञ और उसमें भगवान श्री हरि विष्‍णु द्वारा स्‍वयं आकर सर्प जाति की रक्षा तथा तोमर वंश के लोगों को सर्प द्वारा न डसने तथा डसने पर असर न होने के वरदान की त्रिवाचा की कथा जगत प्रसिद्ध है ।
दिल्‍ली

इसी राजवंश के आगे बढ़ते इन्‍द्रप्रस्‍थ दिल्‍ली के 
राजसिंहासन पर महाराजा अनंग पाल सिंह तोमर सिंहासनारूढ़ हुये (736 AD), आगे महाराजा अनंगपाल सिंह तोमर III ने दिल्‍ली से आकर चम्‍बल नदी के किनारे ऐसाह नामक स्‍थान (वर्तमान में मुरैना जिला ) पर अपनी नई राजधानी बनाई(1190 A.D.)

राजचिह्न एवं वंश चिह्न (तोमर राजवंश)

*गोत्र – व्याघ्रप्रद(वैयासर, व्यास्स्त्र ,बोली अपभ्रसो के कारण*)


इष्ट देव - श्रीकृष्ण, भगवान शिवजी
कुलदेवता - श्रीकृष्ण, भगवान शिवजी
शाखा – माखधनी,
वंश – चन्‍द्रवंश ,
कुलदेवी – योगेश्‍वरी,
देवी – चिल्‍हासन (वर्तमान में कालका देवी के नाम से प्रसिद्ध हैं, इनकी चील पक्षी की सवारी है- इनका मंदिर अनंगपुरी दिल्‍ली में है, यह मंदिर महाराजा अनंगपाल सिंह तोमर ने बनवाया था),

राजचिह्न – गौ बच्‍छा रक्षा (गाय बछड़ा की रक्षा) – यह राजचिह्न प्रयागराज में स्‍थापित है,
वंश वृक्ष चिह्न – अक्षय वट- यह चिह्न प्रयागराज में स्‍थापित है,
माला – रूद्राक्ष की माला,

पक्षी- गरूड़,
राज नगाड़ा – रंजीत (रणजीत),
तोमर राजवंश पहचान नाम- इन्‍द्रप्रस्‍थ के तोमर,
राज वंश एवं वंश कुल पूजा- लक्ष्‍मी नारायण,
आदि खेरा (खेड़ा) (मूल खेड़ा) – हस्तिनापुर,
आदि गद्दी (आदि सिंहासन) – कर्नाटक (तुगभद्रा नदी के किनारे तुंगभद्र नामक स्‍थान पर महाराजा तुंगपाल) ,
वंश एवं राज शंख – दक्षिणावर्ती शंख,
तिलक – रामानन्‍दी,
राज निशान- चौकोर हरे झण्‍डे पर चन्‍द्रमा का निशान,
पर्वत – द्रोणांचल,
गुरू – व्‍यास,
राजध्‍वज – पंचरंगी,
नदी- गोमती,
मंत्र – गोपाल मंत्र,
हीरा - मदनायक ( इसे बाद में मुस्लिमों द्वारा कोहेनूर कहा गया – यह हीरा अब जा चुका है) ,
मणि – पारसमणि,
राजवंश का गुप्‍त चक्र – भूपत चक्र,
यंत्र – श्रीयंत्र,
महाविद्या – षोडशी महाविद्या

राजा भलभद्र सिंह 'चहलारी'

यथोचित प्रणाम।  जो शहीद हुये है उनकी...... 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में,  अंग्रेजों के खिलाफ बहराइच जिले में रेठ नदी के तट पर एक निर...