रविवार, 24 मार्च 2024

पूर्वाभास

#नेह..

जब नेह पर अशेष भावनाओं का सम्मान व समान एकीकार स्वरूप 'स' का अर्द्धभाग संयुक्त होता है।वहाँ ठाठे मारते सागर की तरह,विकार रहित 'स्नेह' प्राप्त होता है।असीम सम्भावनाओ और अद्वैत भावनाओं का ऐसा मंथन जिसमे कुछ प्राप्त करने के भाव से अधिक कुछ खोने की परिकल्पना अधिक प्रभावी होती है। जहां कुछ प्राप्त करने भाव जागृत हुआ वह लक्ष्य अधिक प्रतीत होता है,प्रेम का अर्द्धनकार युक्त-संयुक्त भाव ही कुछ खोने का स्वरूप है ।

स्नेह जब भाषाई सभ्यता में परिवर्तित होकर उर्दू से होकर  गुजरती है ,तब यह मीठी जुवां की गजल बनकर बह उठती है।गजल उम्दा लफ्जों व खूबसूरत अहसांसो वह दरिया है जो यकायक अहसांसो में नफासत के साथ साँसों का हमसफ़र बनकर लरज उठती है ।

जैसे किसी ने श्वसन के वेग को फेंफड़ों में खीचकर रोक लिया हो और श्वसनतंत्र दृश्यनुभूत भाग एकाएक अधिक आकर्षक हो उठा हो!
जैसे किसी ने, सप्तस्वर ऊँचाई से गिरते जलप्रपात के जल को अधर में दिव्यता से अस्थिर को स्थिरता में परिणीत कर दिया हो!
जैसे किसी ने,उन्मुक्त गगन में विहार करते पखेरूओं कि गति को सम्मोहित करके कलरव के साथ कुंडली की तरह गौलाकर कर दिया हो!

प्रेम में प्रायः एक विचित्र और विलक्षण अनुभति-अनुभूत करने का अनुभव हुआ है।
'शून्य में एकटक अशेष प्राप्तता के साथ अप्रत्यक्ष का प्रत्यक्ष हो उठना।'
सम्मोहन का इतना विलक्षण प्रभाव होता है कि सामने कब-कौन-क्या हो गया अनुभूत ही नही होता। खुले नयनों जागृत अवस्था मे स्वप्न की सुंदरता तलाशना ही प्यार है ।

इश्क में सीमायें,बन्धन,स्तर इत्यादि अपना परिमाप खो बैठते हैं।इसकी अनुभूति जितनी सुखद व लालायित करने बाली है,वहीं इसकी अभिव्यक्ति उतनी ही दुस्कर है ।इश्क करिये..जीवन का अद्भुत अनुभव है किंतु इसको प्राप्तता या लक्ष्य बना लेना इसकी क्षीणता है ।

प्रस्तुत पंक्तियों में 'सायरा जंहा' के सैरों में लफ्जों के साथ चेहरे पर आते अहसासों को लफ्जो के दरमियाँ महसूस करिये ,इश्क की खूबसूरती में 'चार चांद लगना' शायद इसी को कहते होंगे!!
         ❤️
--------///-------
सोचा था ए साहिबान मुहब्बत के दौर से निकल जाएंगे,
फिर से दोहरा के मुहब्बत को फिर न कभी आजमाएंगे!

अहसासों का दरिया दहक उठा यादों के शोले पाकर,
 इश्क हमशक्ली के चेहरों से नकाब सभी उतर पाएंगे !!

इश्क असफल रस्सी में पड़े बल जैसे तबस्सुम शाम,
शायद जलकर भी  बलरस्सी बनकर बिखर जाएंगे!!

------
JVS.

मंगलवार, 12 मार्च 2024

कुछ नही बस यूं ही


    
लड़का बीती को बिसार जीवन के नये लक्ष्य को लेकर आगे के धागे बुनने में मस्त हो गया,पर उसके अंग-अंग में बस चुकी जीवन शैली को बिसारने में उतना ही असफल भी हो गया था।अब वह बीती बात में लिए कठिन परिश्रम के साध्य प्रशिक्षण को इतनी शीघ्रता में भूल भी कैसे सकता था भला??
वह सर्वोत्तम प्रशिक्षु था, कम बोलना अधिक सुनना और अच्छे काले घने बाल होते हुए भी छोटे-छोटे बाल रखना जेसे उसे सबसे प्रिय था ।

वह अपने घर का छोटा किन्तु सबसे बड़ा शैतान हुआ करता था...उससे कोई नही बचता था कि जिसे वह तंग न करता हो!किन्तु जिस तरह मरखा से मरखा बैल पशु हाट में जाकर सारी हेकड़ी भूल जाता है। उसी तरह उसे भी प्रशिक्षण केंद्र जाकर अपनी शैतानियों से मुह मोड़ना पड़ा था। उसे पसंद था 90 और उससे पहले के गीत सुनना और किताबों से  बेइंतहा मोहब्बत करना,गर्मी की छुट्टियों में वह अपने बड़े भाइयों के सिलेबर्स की किताबें पहले ही चट कर लिया करता था..।और वह मुहब्बत के माह में किताबो की मुहब्बत शिद्दत से निभा रहा था। 
फरबरी में सौगात से प्राप्त हुई हरक्युलिस साइकिल चलाने को मिली...।.कॅरियर में बंधे बैग और उसकी साइकिल का वेग...उसकी हवा से पैराशूट बनती सर्ट मापा करती थी ।

वह फ़रवरी और फाल्गुन के प्रिय सरगम की शाम थी,पेड़ो से छरते पात और और कॉलेज केम्पस में बौराये दशहरी से लड़के को कोई आकर्षण न था।वह तो सायकल और  किताबो में जो डूबा रहता था....!
सायकल की चैन कुछ लूज थी जो प्रायः ब्रेकर पे उतर जाया करती थी।लेकिन  फ्रिव्हील से उतरी हुई चैन को बापस पीछे पैडल मार बापस चढ़ा लेना जैसे उसके लिए आम बात थी....और एक दिन बारिस में केम्पस के पास बने स्टॉपेज पर चेन उतरी! घनघोर बारिस......झमाझम बारिस...पर लड़के के कई पेड़ल  उलट मारने पर भी चैन न चढ़ी। चैन स्टेण्ड  और कल्पम्स के बीच  जो फंस चुकी थी।वह  देख न जाने क्या सोच मुस्कुरा उठा,जैसे सोचा हो कि कुछ जगह और करतब नही किस्मत का भी खेल होता है ।
वह स्टॉपेज के रेस्टसेल्टर में जा बैठा....!जहां पहले से एक जोड़ी अक्स छिपाये वह स्वप्निल आंखे  बैठी थी...।
पिंक सूट में  सिमटी हुईऔर हल्के मेहरून स्कार्फ से ढके चेहरे में दो आँखे दिखी ..।.उसने पहली बार महसूस किया कि ,क्यों आँखों में आकर्षण की बात शायर- कवि  लिखते आये है...आखिर होता क्या है,यह आँखों का सम्मोहन  ??

बारिश जेसे प्रकृति का वह संयोग था जो निरन्तर होते हुए भी अपनी मध्यस्थता में उन दोनों केव परिचायक बनने पर आमदा थी।केम्पस लॉन की जलती स्ट्रीट लाइट के साथ उन दोनो को अहसास हुआ की आज बरखा न रुकेगी ....!लड़का प्रतीक्षा का सब्र खो बेठा और सर से रुमाल बाँध उलझी हुई सायकल चेन को अलग करने  में व्यस्त हो गया ...।
."सर मुझे हॉस्टल तक ड्राप कर देंगे..प्लीज...प्लीज !!,अब ऑटो भी न मिलेगा !" 
कहते हुए लड़की ने स्कार्फ खोला तो लड़का स्तब्द्ध था और सोचने लगा की कही देखा है!! फिर स्वयं की स्मरण शक्ति के सुप्त हुये सूक्ष्म तन्तुओं में वह छवि खोजने लगा,बार-बार जोर देने पर जब कुछ यकीनी न मिला तो ,काल्पनिक और पूर्व स्थापित भ्रांति में मष्तिष्क ने उत्तर दिया ....इसी कॉलेज की तो है, दिख ही गयी होगी,तू ही किसी पर कहा ध्यान देता है !
मस्तिष्क को सोचने से स्वतंत्र कर वह पुनः चैन निकालने में तल्लीन हो गया।तभी उसने वह देखा जो आजतक न देखा,इतने दिन में शायद उसने कुछ न देखा था जो आज दिखा और चिहुंका ....!!
  जून से लेकर फरबरी भी निकल ही तो चुकी थी फिर उसने आजतक देखा क्यों नहीं ?
अंतर्द्वन्द में चलता प्रश्न-प्रश्न ही रह गया! जब लड़की ने उसे पुनः प्रासंगिक किया.....वह भी नाम लेकर !
इससे पहले की वह कुछ सोचता,उसने चेन को फ्री-व्हील पर चढ़ा पैडल घुमाके तसल्ली की...अब ठीक है न ??
और उसकी ओर बिना देखे ही सायकल के पहिये का मुआयना करते हुये उससे मुखातिब हुआ ।

जी आपको किधर चलना में एरोड्रम रोड बाले हॉस्टल तक ही जाऊंगा...।आप अकेली है तो पहले आपको ड्राप कर दूंगा फिर निकलूंगा ...!
लड़की बगैर प्रतिउत्तर दिए बोली आप चलिए और उसके कन्धे लटका बेग लेते हुए बोली ..."कुछ भीगने बाला तो बता दीजिये में लाइब्रेरी से एक बढ़ी चिल्ली(पॉलीथिन) साथ लाई हूँ " 
लड़के ने खामोस रहते हुए पॉकेट रेडियो उसकी और बड़ा दिया ।

लड़का चाहते हुए भी लड़की से बात नहीं कर पा रहा था...।साइंस की पढ़ाई में पढ़ी शिरायें और धमनियों के मध्य संचारित रक्त बहाव की अधिकतम गति क्या होती है..वह आज अनुभूत कर रहा था ।
उसने मीठे और धीमे स्वर में जब कहा "अब चलो भी,कब तक भिगोगे...और भिगाओगे ?
उसका पहला अनुभव था किसी के प्रति आकर्षण में और वह बार-बार सोचता की सपना है या सच !!

कॅरियर पर पहली बार कोई था, जिससे लड़का शैतान होते हुए भी  कोई भी शैतानी करना जैसे भूल गया था। कभी वह जब भी गले में पड़े स्कार्फ को व्यवस्थित करती थी  तो जो महक वह महसूस करता। वह उसे बार-बार एक अनजान अहसास की अनुभति कराता देता और लड़का सायकल के पैडल चलाते हुए सीटी बजाना भूल चुका था...।उसे अहसास ही न हुआ की कब एरोड्रम रोड निकल थॉमसन क्रासिंग आ चुकी थी...!

"रुको-रुको,हम आगे आ गए,बापस चलिए आपका एरोड्रम तो पीछे रह गया !" 
वह अपनी तल्लीन तन्द्रा से निकला और लौट चला पर उसने लड़की के ओठों के मध्य मुस्कान देख ली थी ।
उन दोनों के हॉस्टल के बीच किलोमीटर भर का ही फर्क था।
एक ही रोड पर ....
लड़की ऊँगली से बता रही थी आगे बाली स्ट्रीट लाइट ...।गन्तव्य आ चुका था.....।।
लड़का बैग बाली थैली लेते हुए पहली बार उसको निहारा ओर लज्ज़ा से दोहरा हो गया ....उसने वह देखा जो आजतक उसने नहीं देखा और अपनी सर्ट उतार पकडाते हुए बोला ,यह लीजिये आप भीगी हुई अव्यवस्थित दिख रही हैं। इसे पहन लीजिये मुझेें सुबह या कॉलेज में लौटा दीजिये ...।
उसे लड़के द्वारा सर्ट देने का जब मन्तव्य आभास हुआ तो वह लज्जा और  दोहरी होती हुई वहीं बेठ गयी पर उसके हाथ में थी लड़के की हल्की काली सर्ट....!

उस रात वह सो नहीं पाया,आँखों के समक्ष केम्पस से लेकर एरोड्रम तक का चलचित्र चलता रहा...और वह बार-बार सोचता की कहाँ देखा है ...?फिर बुद्धि कहती की कॉलेज में रोज ही देखा होगा पर आशवस्त नही हो पा रहा था और सुबह जब आँख लगी तो 11 बजे खुली...!घड़ी की दो सुइयां एक नियत आकर -मिलकर गुजर गईं।अलार्म पिंग-पिंग करता रहा वह सोता रहा ....!

उसने महसूस किया की वह बुखार में है और पोर-पोर दुःख रहा है...।कुछ पिल्स पड़ी थी..नास्ते बाद निगल ली और झटपट तैयार हो ऑटो ली क्योंकि सायकल चलाने को बॉडी तैयार न थी ।
लंच ब्रेक में पहुँचा और केन्टीन में जाकर पंडित जी से कुछ स्लाइस और उसके बाली कड़क चाय बोल दिया ...।उसने वहां देखा की वही लड़की किसी को उत्सुक नजरो से खोज रही है, और वह उसके सामने आ बेठी ...।मुस्कुराते हुये उसको देखा।
उसका मुस्कान बिखेरना जेसे लड़के की त्योरी पुनः भंग कर गया...वह उसे अपलक निहार रहा था !

"सुनो दीदी के लाडले.....तुमसे आज में परिचय कर ही लेती हूँ क्योंकि तुम हो निरे बुद्धू,पढ़ाकू !"
"इन किताबों से फुर्सत पाओ तो कुछ जानो,सम्बन्धियों को   भी यूँ न पहिचानना कोई तुमसे सीखे!"
इससे पहले की वह कुछ समझता ..वह खिलखिला उठी ...।
लड़का जेसे जलतरंग की स्वरलहरी में डूब गया..! 
उसने उसके चेहरे पर चुटकी बजाई और वह हड़बड़ाहट में बोल गया ....में-में...में...में समझा नही ?

लड़की बेतिहासा हंसती रही और लड़का अवाक सा खोया रहा...इसी मध्य उसने लड़के की तह की हुई सर्ट देते हुए बोला की "कल के लिए आभार व्यक्त करके में यह भूलना नहीं चाहुगी! पर यह आपका कर्तव्य था...हम परस्पर सम्बन्धी हैं किन्तु आपको पिछले 8 माह से यह बताते हुए झिझकती थी,सोचा करती थी कि पता नही आप क्या अनुमान लगायें। "
"कल जब बर्षात के अँधेरे में बिजली कड़कती थी,में डर से काँप रही थी...मुझे न बिजली कौंध से बड़ा डर लगता है।"
"आप आये तो हॉस्टल तक पहुंची,न तो मर ही जाती ..थोड़ी और देर में ..!"
अब लड़के का चित्त जाग्रत हुआ,याद  आया की उसकी पड़ोस बाली भाभी जी की छोटी बहिन भी तो यही किसी कॉलेज में दाखिला ली,पर उसके कालेज में होगी ,यह अनुमानित कल्पना से भी परेह की बात है !!

भाभी जी दिवाली पर बता रहीं थी की उनकी बहिन भी उसी शहर में कहीं हैं, जरा मिल आना उससे।आखिर सुदूर    भीड़ से भरे 'नितांत शहरों' में कोई अपने हैं तो उनसे मिलना और परस्पर खोज-खैर ओ खबर रखना हमारी संस्कृति के दायित्व हैं।
एक ही शहर में हो,एक-दूसरे को जानते हो तो  फिर तो टाइमपास भी होता रहेगा ! हम भी फिक्रमंद नही रहेंगे कि शहर में लड़की अकेली है ।
पर उसे क्या पता था की उसका परिहास उसको बदल देगा और जो परिलक्षित होगा वह उसे शैतान से परिपक्वता में बांध लेगा ।

समय के साथ पता ही न चला की वारिस में परिचय हुए दो प्राणी कब परस्पर परछाई बन गए...।कितनी ही बार साथ खाना खाये और कितनी ही बार एक-दूजे को सिखाते भी रहे ....।दोनों के दोस्त कहते थे की यह दोनों कितनी समानता लिए हैं, अगर बेलेंस किया जाए तो अंश भर भी फर्क न निकलेगा ...??
एक्जाम्स में लड़का 2 अंक से आगे आया ...वह बोल उठी की "लड़के थोड़े श्रेष्ठ ही अच्छे होते है,न तो इकवल्टी से लडाईया अधिक होती हैं !"

वह अंतिम वर्ष का अर्द्ध था.....।
दिवाली अवकाश से पूर्व दोनों ने साथ-साथ घूमा और एक पाम वृक्ष की छाँव में, लड़की ने स्नेहभूत होकर  लड़के के बालों में उंगलियों के पोरों से स्नेह अथवा बात्सल्य की अनुभूति  क्या दी। लड़का उसके अंक में सोता रहा ...।
घण्टो निकल गये, धूप आई तो उसने अपने स्कार्फ की छाँव कर दी ताकि नींद न टूटे .....।
यह करीव 31 माह में यह उनका पहला और निश्छल स्पर्स था ...वह सोता रहा और वह उसके सिर को ममता के साथ सहलाती रही ....दींन दुनिया से बेखबर...बेपरवाह होकर !!

वह जागकर  पूछता है,कि मुझे जगाया क्यों नही इतना समय  हो गया ?
वह किसी दूसरी दुनिया में बिचरण करती हुई कहती है की "आज जब तुम्हे पहली छुआ तो मेरा ममत्त्व जागृत हो गया ...और तुम्हारी ये निश्छल भोली सूरत निहारते-निहारते मेरी आँखे तृप्त नहीं हो रही  थी।"
"ऐसा प्रतीत हो रहा था,मेरे मातृत्व की सारी सुप्त प्रकृति  सिमट कर तुम्हारे में आ स्थिर हो गयी है,तुम्हे पता भी है???
"तुम सोते समय कितना खूबसूरती से मुस्कुराते हो,जब मुस्कुराते हो तो ऐसा लगता है, जेसे पलक झपकाते ही अद्भुत बालदृश्य- वह दृश्य कही चला न जाए !!"
"हम स्त्रियों में यह अलग ही अनुभूति होती है,प्रेम में समर्पण और समर्पित स्नेही में बात्सल्यबोध हम सहज ही अनुभूत कर लेती हैं।"
पता नही क्या था वह....??
वह यह सब बताते-बताते पता नही क्यों फफक पड़ी और उसके मोटे तीखे नयनो से कुछ भावविहलता की ओस सहज ही लड़के के ललाट को आलिंगनबद्ध कर गयी।
यंत्रवत सा लड़का भी भावबिभोरता में कुछ अश्रुदान करते हुये उसके समक्ष अपने सीने को भुजाओ से समांतर करते हुऐ गले लग गया ।

अगले दिन उनका पूरा ग्रुप्स साथ-साथ अपने-अपने गन्तव्य की गाड़ी पकड़ता है।राह में होती अंताक्षरी और गले मिलकर कुछ समय के लिए विदा होते सभी खुश थे, पर कहीं कुछ दो जोड़ी आँखे समन्दर हो रही थी ।

समय आता है और लड़के का रिम प्रीपेड रोज रिचार्ज होता है...।बातो में पुनर्वृत्ति दोहराई जाती है,कुछ दिन के शेष अवकाश जेसे युग बने प्रतीत होते है। 
एक दिन लड़के को खबर मिलती है की एक दुर्घटना में वह अधूरा रह गया ,जाते-जाते उसके सांस तोड़ते-.कॉंपते ओठों  पर उस लड़के का अधूरा नाम रह गया .....!!

लड़का कुछ समय विक्षिप्त सा रहा...पोरो पर दिन गिनता रहा पर उसका एक टुकड़ा दूर क्षितिज से उसे जेसे आज भी पुकार रहा है...उसको बार-बार निहार रहा है। सफलता की छांव से टूटा स्नेह जब-जब उसपर बरसता है,वह सफलता को स्पर्श करके भी असफल कहानी ही लिखता है ।
वह लड़का आज भी उस साइकल के करियर को निहारता है,केरियर-केरियर रिक्त  जेसे खोया हुआ समय पुनः आएगा और पुकारेगा .....
"मुझे होस्टल तक ड्राप कर दीजिये सर !"

---------
जितेंद्र सिंह तोमर '५२से'
    आगरा,उप्र.
      282007
   29/02/2016

राजा भलभद्र सिंह 'चहलारी'

यथोचित प्रणाम।  जो शहीद हुये है उनकी...... 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में,  अंग्रेजों के खिलाफ बहराइच जिले में रेठ नदी के तट पर एक निर...