सुना है..!
तुम बहुत दूर जाने बाले हो,अपनो से कहीं विस्तृत होकर,नया सम्बोधन लेकर,विरक्त से होकर अपनी शास्वत दुनियाँ में पदार्पण करने...जैसा कि हर कोई एक स्वप्न में सजा के रखा करता है।
अब वह तुम्हारा मेरे से तमाम प्रश्न रखना और अनायास ही चिंतित होकर लताड़ना कदाचित ही हो पायेगा।शायद ही वह दिव्य ध्वनियों से अभिगुंजित होती स्वर सरिता पुनः अपने कर्णों के माध्यम पुनः अपने मन मस्तिष्क में लहरा सकूंगा !
में नही जानता कि हम किसको-कितना स्मरण रख पायेंगे,किन्तु जब-जब यारी-दुनियादारी,ईमानदारी व परस्पर स्वभावों की तुलना करने की बारी आएगी...मुझे-तुम्हारी और शायद तुम्हे भी मेरी सूरत।उजली न सही,धुंधली तो अवश्य याद आएगी न?
क्या तुम्हें याद रहेगा,मेरा तुम्हारे ओजस्वी चौड़े भाल पर संस्कृति की बिंदी के लिए बाध्य कर देना?और तुम्हारा मुझे "प्राचीन खड़ूस बुढ़ऊ दोस्त " कहकर 'बिंदी' स्वीकार कर लेना ।
सच कहुँ यार...!!
मेरे 'शब्द' तुम्हारे स्वर के बिना बहुत नीरस हो चुके हैं,प्रायः अब वह लिखने की अकुलाहट व मेरी सदैव की टंकण त्रुटि पर तुम्हारी झल्लाहट का न होना बहुत खलेगा।बहुत याद आएगा तुम्हारा शब्दों में प्राण सजीव करने का अद्भुत सामर्थ्य।पर मेरे सामर्थ्य से तुम बहुत दूर अपने स्वर्णिम सपनो में सदैव गतिमान रहना। प्रायः इस संसार की गति में आकर सबको अपनी गति पकड़नी होती है ।
हम प्रत्यक्षय कभी भेंट नही कर सके,कभी तुम्हारे आग्रह पर में उपलब्ध नही हो सका तो कभी मेरे आग्रह पर तुम।शायद कुछ आत्मीय बंधन बनते ही इस लिये हैं कि,उनकी रिक्तियां सदैव भावाव्यक्तियों से कहीं सर्वोच्य होकर सदैव चिर स्मृतियों में स्थायित्व प्रदान करके स्मरण की जा सकें ।
सम्भवतः यह मेरा तुम्हारे लिए लिखा पहला और अन्तिम भावासक्त विदाई भाव हो।क्यों कि तुम्हारे को संस्कारस्वरूप प्राप्त हुए।नूतन जीवनशैली,नूतन उत्तरदायित्व एवं नवनूतन भावप्रवणता मुझे भावरहित होने पर बाध्य कर देती है।
लोग कहते हैं कि,एक समय अंतराल उपरांत हर कोई अपनी स्मृतियों को विस्मृत कर देता है।किन्तु में बिलुप्त होती उस मानव सभ्यता का प्राणी ठहरा जो अपनी जीवनी को बड़े समीप से चलचित्रित होते प्रायः देखा करता हुँ।अपनी इसी विप्लब क्षमता के कारण कितनी ही बार स्वयं के द्वारा ठगा जाता हूँ ।
मुझे विदित नही कि लोग क्या समझेंगे?
सम्भवतः स्नेह से अनुरिक्त करके जोड़े।जैसा की आम अवधारणा पूर्व से निहित है। किन्तु यह स्नेह की भावना उस आम जनमानस की भावना से कहीं सो कोटि सर्वदा प्रथक है ।
यार!!
तुम न,मेरी जिन्दगी के वह अभिसिंचित अमूल्य धरोहर थे,जो कभी न कभी उसके धारक को दिव्य रश्मो के साथ देने ही थे।
माँ भगवती तुम्हारे पावन आँचल में सदैव उन्नति-प्रगति व बात्सल्य की दिव्य 'रश्मियां' सदैव पल्लवित रखे ।
तुम जिधर जाओ उधर मधुर श्रवनमाष की दिव्य सुसंस्कृतिया सदैव 'अभिगुंजित' होकर गुंजार करती रहे ।
सदैव प्रशन्न व आनन्दित रहकर नवजीवन की असीम शुभकामनायें प्रिय ...!!
सुखद विदाई,अँकवार स्नेह ...अलविदा !!