सोमवार, 15 अगस्त 2022

कमांडर अर्जुन सिंह भदौरिया जी

लाल सेना के संस्थापक - महान क्रान्तिकारी कमांडर अर्जुन सिंह भदौरिया

ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध लाल सेना तैयार कर एक युवक अर्जुन सिंह भदौरिया ने न केवल इटावा जनपद बल्कि सीमावर्ती जिलों को भी आजादी के संघर्ष की चेतना से ऐसा जोड़ा कि घर-घर में स्वतंत्रता का बिगुल बज उठा

10 मई 1910 को बसरेहर के लोहिया गांव में जन्मे अर्जुन सिंह भदौरिया ने 1942 में अंग्रेजी शासन के खिलाफ बिगुल फूंक दिया था . 1942 में उन्होंने सशस्त्र लालसेना का गठन किया. बिना किसी खून खराबे के अंग्रेजों को नाको चने चबवा दिए. 

1940 के दशक में, कमांडर अर्जुन सिंह भदौरिया ने तीन साल (1941-44) तक चंबल की घाटियों के किनारे यमुना के किनारे रहने और पनपने वाले ब्रिटिश अधिकारियों को निशाना बनाते हुए एक सशस्त्र समूह लाल सेना का गठन किया था। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय सेना की तर्ज पर भारत छोड़ो आंदोलन के समय लाल सेना बनाने के बाद 'कमांडर' की उपाधि अर्जित की।  

आजादी के योद्धा कमांडर अर्जुन सिंह भदौरिया ने चंबल घाटी में हजारों क्रांतिकारियों को ट्रेनिंग देकर फिरंगी सरकार की चूलें हिलाने के लिए सशस्त्र क्रांति का सबसे उम्दा प्रयोग किया था. करो या मरो आंदोलन के दौरान कमांडर को 44 वर्ष की सजा हुई और अपने पूरे जीवनकाल में वह करीब 52 बार जेल गए.

उन्होंने दो स्तरों पर काम किया - एक ओर वे एक गांधीवादी थे, लेकिन दूसरी तरफ उन्होंने लाल सेना की स्थापना की, जिसने लोगों को राजस्व, खाद्यान्न और हथियार जैसी ब्रिटिश संपत्ति लूटने के लिए प्रशिक्षित किया।  जबकि पैसे और हथियारों का कुछ हिस्सा समूह चलाने और खाद्यान्न खरीदने के लिए इस्तेमाल किया गया था, शेष पैसे का इस्तेमाल गरीबों को खिलाने के लिए किया गया था, ”।

अर्जुन सिंह के साहस से ब्रिटिश शासन तंग आ चुका था, लिहाजा जब उन्हें गिरफ्तार किया गया तो उन्हें बेडिय़ों से बांधकर रखा गया था। कोर्ट में मुकदमा चला और उन्हें 44 साल की कड़ी सजा सुनाई गई। आचार्य नरेंद्र देव चंबल के इस क्रांतिकारी संगठन से प्रभावित हुए और उन्होंने ही पहली बार अर्जुन सिंह भदौरिया को 'कमांडर' कहकर संबोधित किया। करो या मरो के आंदोलन में उन्हें 44 साल की कैद हुई. अंग्रेज इनसे इतने भयभीत थे कि उन्हें जेल में हाथ-पैरों में बेड़ियां डालकर रखा जाता था.

यही कारण रहा की आजाद भारत में कमांडर अर्जुन सिंह भदौरिया 1957, 1967 और 1977 में इटावा से लोकसभा सांसद चुने गए. इटावा मे शैक्षिक पिछड़ेपन की समस्या, आवागमन के लिए पुलों का आभाव जैसी तमाम सरोकारी समस्याओं को वे सदन में प्रमुखता से उठाते रहे. कमांडर ने इसी जज्बे से आजाद भारत में आपातकाल का जमकर विरोध किया. तमाम यातनाओं के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी, जिससे प्रभावित क्षेत्र की जनता ने सांसद चुन कर उन्हे सर आंखों पर बैठाया. वे आपातकाल में पुनः जेल भेज दिए गए। उन्होंने किसान पंचायत के संगठन में विशेष रुचि ली और स्वामी भगवान, गेंदा सिंह, मुलखी राज, सूरजदेव, रामधारी शास्त्री और बलवान सिंह के साथ मिलकर सशक्त किसान आंदोलन खड़ा किया। 🇮🇳

राजा भलभद्र सिंह 'चहलारी'

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