गुरुवार, 16 अप्रैल 2020

भूपत सिंह चौहान 'बागनिया'

कुछ अपराधियो की कहानिया बड़ी फ़िल्मी सी लगती है। कथानक के प्रथम भाग में वही खलनायक,नायक जैसा प्रतीत होता हे और मध्य में अतिक्रूर खलनायक से चलकर अंततः पुनः संवेदनाओ का पात्र बन जाता हे ।
दरअसल ऐसी हजारो कहानिया हे,जिन्होनो भावतिरेक में रास्ते तो गलत चुन लिए और जब उन्हें अहसास हुआ तो बापसी की राह सिर्फ मृत्यु ही बाकी थी। कुछ ऐसी ही कहानी हे भूपत सिंह वागनिया की ....!!

गुजरात के काठियावाड़ का वो लड़का जिसका नाम था भूपत सिंह चौहान 'वागनिया' दरबार में घोड़ों की देखभाल का काम किया करता था। बहुत कम उम्र से ही घोड़ों की दौड़ में उनके साथ भाग-भाग कर भूपत की कद काठी निखर आई थी। इसके अलावा वागनिया के राजा अमरावाल के साथ शिकार पर जाने के कारण भूपत  बंदूक चलाना भी सीख लिया था। कहते हे की प्रकृति आगामी भविष्य की दुर्गमताओ के लिए मानव को पूर्व से प्रशिक्षित करती हे और ऐसा लग रहा था मानो नियति उसके कल के लिए उससे सारी तैयारी करवा रही हो ।
जीवन सामान्य चल रहा था कि तभी भूपत के मालिक ने आत्महत्या कर ली.....!इसके साथ ही वागनिया दरबार पर 9 लाख की चोरी का इल्ज़ाम भी लग गया! जिसमें भूपत और उसके मालिक के खिलाफ वारंट जारी हो चुके थे....।
भूपत ये समझ गया था कि इस झूठे इल्जाम में फंसा कर उसे जेल में डाल दिया जाएगा ।
इसी उधेड़ बुन के बीच उसकी मुलाकात उसके दोस्त राणा भगवान सिंग डांगर से हुई....राणा के परिवार के साथ पहले ही अनहोनी हो चुकी थी....उसकी बहन की आबरू लूट ली गयी थी तथा उसके पिता को मौत के घाट उतार दिया गया था....!

राणा के सिर पर खून सवार था,उसे किसी हाल में भी अपने दुश्मन से बदला लेना था और भूपत के लिए अब दोस्त का बदला उसका अपना बदला हो चुका था। बस फिर क्या था उस बदले के लिए भूपत ने अपने जीवन का पहला कत्ल किया और इसी के साथ राणा और भूपत ने गैंग बना ली....!

दो लोगों से बनी ये गैंग देखते देखते 42 डाकुओं के गिरोह में बदल गयी। अब हर तरफ भूपत डाकू के चर्चे होने लगे. 87 हत्याओं के साथ 8 लाख 40 हजार की लूट भूपत और उसकी गैंग के नाम दर्ज हो गयी....! अभियोजन पहला था किन्तु भूपत-भगवान की यह जोड़ी सौराष्ट्र प्रान्त में अपराधो का जैसा पहाड़ खड़ा करना चाहते थे ।

भूपत ज्यों ज्यों पुलिस के आंख की किरकिरी बन रहा था, त्यों त्यों आम लोगों के बीच उसकी जयकार हो रही थी.....इसका प्रमुख कारण था आम लोगों के प्रति भूपत की अच्छाई। भूपत पर कभी किसी महिला के साथ दुर्व्यवहार का आरोप नहीं लगा....उल्टा उसने कई गरीब लड़कियों की शादी करवाई और अपने लूट के माल में से दोनों हाथ खोल कर गरीबों में धन बांटा...!

कहा तो यहां तक जाता है कि एक बार भूपत डाकू ने एक सुनार की दुकान लूटी.... उस लूट में जितने सोने चांदी के सिक्के थे भूपन ने वे सब उछालने शुरु कर दिए जिससे गरीब लोग उसे उठा सकें। यही कारण था कि भूपत कभी पुलिस के हाथ नहीं आया क्योंकि उसे हर घर में शरण मिल जाती थी ।
भले ही भूपत बहुत चालाक था लेकिन कहते हैं ना कि एक दिन घड़ा सबका भरता हे और  अंत सबका आता है। भूपत के आतंक का भी अंत हुआ.....भगवान के साथ लगभग पूरा गैंग ढेर हो गया लेकिन भूपत पुलिस के हाथ ना आया क्योंकि वो सरहद पार कर पाकिस्तान चला गया....।

यहां उसे अवैध रूप से सरहद पार करने के जुर्म में एक साल की कैद तथा 100 रुपये जर्माने की सजा हुई। भूपत ने सोचा कि वह फिर से अपने देश लौट जाएगा मगर ऐसा ना हो सका,उसे पाकिस्तान से दोबारा भारत ना लौटने दिया गया...!

आखिरकार भूपत सिंह चौहान ने यहां अपना धर्म परिवर्तन कर लिया तथा बन गया अमीन यूसुफ. यहीं उसने एक मुस्लिम लड़की से शादी भी की तथा 2006 में पाकिस्तान की धरती पर ही दम तोड़ दिया ।

भूपत सिंह के जीवन पर 'एक हतो भूपत' 'भूपत एक विलक्षण गुन्हेगार' तथा 'डाकू भूपत सिंह' जैसी कई किताबें भी लिखी गयीं.....।

(चित्र गूगल चचा की जेब से उधार)
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चम्बल मुरैना मप्र.

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