बुधवार, 25 मार्च 2020

===चम्बल एक सिंह अवलोकन===

===चम्बल एक सिंह अवलोकन===
                  भाग-97
        ◆रमेश राजावत◆

अंम्वाह टी आई रोज की तरह अपने ऑफिस पहुचे ही थे की महुआ सब स्टेसन SI पांडे का खरखराता स्वर वायरलेस रिसीवर की पिंग पिंग करती हल्की ध्वनि पर संगीत छेड़ रहा था....".सर आई हेव एम्बुस्ड द ===चम्बल एक सिंह अवलोकन===
     भाग-97
◆रमेश राजावत◆

अंम्वाह टी आई रोज की तरह अपने ऑफिस पहुचे ही थे की महुआ सब स्टेसन SI पांडे का खरखराता स्वर वायरलेस रिसीवर की पिंग पिंग करती हल्की ध्वनि पर संगीत छेड़ रहा था....".सर आई हेव एम्बुस्ड द टेरेबल ऑफ़ चम्बल रमेश...आई हेव वांट टू बेक आप फोर्सेस इमिडेडली इन विलेज गोहदुपुरा फार्महाउस ऑफ़ मुखिया ...ऑवर!!"

रोजमर्रा की फाइल्स में सर झुकाये इंस्पेक्टर ने आनन-फानन में  ऑफ़ चम्बल रमेश...आई हेव वांट टू बेक आप फोर्सेस इमिडेडली इन विलेज गोहदुपुरा फार्महाउस ऑफ़ मुखिया ...ऑवर!!"
आनन-फानन में 25 लोगो की टीम गठित की गयी और बात तत्कालीन आईपीएस चम्बल रेंज विजयकुमार  सूचित की गयी ...दलबल और दलबल की कांनवाय जेसी उड़ चली पिनाहट रोड की धूल के गुब्बार यथा स्थिति बखूबी वयाँ कर रहे थे की मामला कितना महत्वपूर्ण हे ।

उसैदपूरा 'तंवरघार उ.मा. विद्यालय' के तिराहे पर अगर बागी/डाकुओ की लाशो की कोई गणना करने बाला होता तो सम्भवतः अपने आप में इस क्षेत्र की कुख्याती का कीर्तमान बन जाता किन्तु क्रोध-दहसत,प्रतिशोध और धूर्तता से बाहर आकर किसी ने नही देखा ट्रेक्टर से ज़िंदा घसीट कर ले जाते हुए फुला डाकू की उधडी हुई चमड़ी को और उसे घसीट कर ले जा रहे उसी के परम् मित्र रघुनन्दन शर्मा थानेदार को .....यंहा लाशो सुरक्षित रखने के लिए 'फॉर्मलीन' नही मिलती थी और मरे हुए शरीर को नीम के झोंरो(पत्तो) में रखा जाता था फिर चाहे शरीर कर्तव्य की वलिवेदि पर गोली खाये किसी खाकसार हुए खाकी का हो या बदले की भावना में बीहड़ कूड़े बागी अथवा डकेत का हो ....!
चम्बल के हजारो किस्से हे कुछ मेरे हिस्से हे तो कुछ आपके हिस्से और रमेश राजावत का किस्सा भी चम्बल की एक चूक का हिस्सा भर हे। जो चम्बल का अभिन्न हिस्सा हे और लुप्त होती स्मर्तियो का एक हिस्सा है ।

जिला भिंड की रौंन तहसील का कछार बाला भाग,जँहा उप्र-मप्र के तीन जनपद जेसे वहति हुई जलराशि के समक्ष परस्पर कलेऊ करने बेठे किसान ....वहति हुई पञ्च संगम हुई नदियो में भले ही कोई  जल का भेद न समझ आये किन्तु बहादुरपुरा निबासी रमेश को अपने घर का टिमटिमाता दिया समझा जाता था...! पढ़ने में कुसाग्र बुद्धि और ग्रामीण चर्या में कसा हुआ मेहनती शरीर जब बहादुर पुरा के ऊँचे नीचे टीलो पर सैना के लिए पसीना बहाता था तो कोई भी कह उठता "अरे जाय रमेशा ऐ देखो, फौज में जायबे को कैसो पगला हे गओ हे !"
रमेश का यही जूनून उसे 12 जून 1988 को ला खड़ा करता हे ग्वालियर स्थिति बाज स्टेडियम बीआरओ भर्ती ग्राउंड में और तीन चक्कर टॉप में पूरा करते-करते रमेश के पाँव में चउथा चक्कर ...ग्राउंड में पड़ी बजरी से घायल होकर इस सरजमी पर पहली बार लहू के निसान अंकित करता हे ...पर कहते हे की जिन्हें जूनून होता हे वह दर्द की परवाह नहीं करते और रमेश जिंदगी की पहली रेस में 48 नम्बर की स्टाम्प कन्धे पर अंकित करता हे ।
पर शायद नियति पर सभी की तरह रमेश का भी वस नही था...मेडिकल एक्जाम्स में अनफिट ठहरा दिया जाता हे। हतास-निरास घर लोट आया और घर पर पड़े CRPF कॉल लेटर की तिथि की प्रतीक्षा करने लगता ...समय ने अपनी गति भी नही बदली और रमेश की किश्मत का द्वतीय अध्याय बदल गया ।
भोपाल स्थिति बंगरसिया भर्ती केंद्र से रमेश को 'एजुकेशन हलबिल्दार' पद पर रिकरियूट कर लिया गया। घर की कच्ची दीवाले पक्की खुशियो के गीत गुंजार करने लगी और घर में वैवाहिक रिश्ते भी आने लगे पर रमेश अभी कहा तैयार था प्रणय की वेदी में बैठने ...उसे प्रतीक्षा थी तमाम रैंक और घर की मुकम्ल ईटो से सजी बैंक का फिर उसे परवाह नही थी कितने ही बंकर बदले जाए और कितने दुश्मन मारे जाए ...!
समय पंख लगाकर उड़ता रहा और स्नातक रमेश एजुकेसन हवलदार से Asi पद की पदोन्नति अपने कोशल और तीक्ष्ण बुद्धि पा गया ...घर की मिटटी की दीवालों पर सीमेंट और ईंट की मजबूती तो जम ही रही थी किन्तु नियति रमेश के लिए अलग ही बुनियाद लिख रही थी ।

वह 11 अप्रैल 1991 की भोर थी जेसे रमेश के जीवन में यह सुभह नही भाद्रपद की अमावश्या की स्याहता थी जब खलिहान में आग लगी या लगाई का पर्दाफास हुए बगैर रमेश के पिताजी को खलिहान में झुझा दिया गया...शरीर से वृद्ध श्री राजावत जी गाँव की प्राथमिक शाला के ब्लॅकबोर्ड पर चॉक चलाया करते थे और सम्माननीय व्यक्ति थे किन्तु जब उनपे लोगो के लट्ठ चले तो वह अंतरयात्रा को चल निकले ...और खुशहाल गाँव में भ्याभ्यता की नीव ऐसी पड़ी जो दशको तक रक्त की शीतलता से भी न बुझ पायी। रमेश की जिंदगी का तीसरा पड़ाव था जब श्मशान के धुएं में बिलीन होती एक शिक्षक की अंतिम कहानी पर उसके बेटे ने अग्नि को साक्षी मान सैनिक जीवन ली सपथ को भुला कर, प्रतिशोध की सपथ लेली ...!!

24 अप्रैल 1991 की वह तेहरवी शायद ही कोई भूल पायेगा जब मृत्युभोज उपरान्त रमेश की राइफल से निकले शीशे ने दो अप्रत्याशित तेहरवियो की मुनादी कर दी और जो ट्रिगर आतंकियों नक्सलियों पर बज्र प्रहार करता था वह चम्बल की वादियो में कहर बनके बरपा !
Crpf का एक असिस्टेंट सव इंपेक्टर की वर्दी पर पैसे से खरीदे हुए दो सितारों में इजाफा ही नही हुआ था वरन रमेश राजावत से 'रमेशा बागी' सफर भी प्रारम्ब हुआ ।
कन्धे और कमर में बंधे बिलडोरिये के कारतूस 315 से एसएलआर में क्या बदले दनादन रमेश के अपराधिक मामले जिले दर जिले बदलते गए ...फिरोतियों की ऐसी बाढ़ आई की एक समय में सेकड़ो बनिए धन स्वतः रमेश को देंने पहुच जाते थे। बड़ी हुई कुख्याति ने रमेश का गैंग भी खड़ा कर दिया जिसमे बड़ी कॉन्थर थाना पोरसा के चैना तोमर जेसे तैराक भी थे ।
में चम्बल में नगरा के लाखन के बाद किसी को किस्मत का धनी समझता हु वह रमेश हे क्योंकि इतनी वारदातो के बाद भी वह बुद्धि और सक्रिय मुखविर तन्त्र के कारण हर बार पुलिस प्रशाशन को चकमा दे जाता और तुरन्त ही कोई बड़ी पकड़ करता। उसने अपनी सैनिक जीवन के अनुभव का बखूबी प्रयोग किया और तावातोड़ अपहरण करके नई ईवारत लिखी ...नए सम्पर्क हुए और अपहरण ऐसा भी हुआ जब औरैया पुलिस अधिकारी की लड़की को ही उठा लिया ...नाम था बबली पांडे !
बबली और रमेश का किस्सा भी बड़ा फ़िल्मी और दिलचस्प रहा हे। अपहृत होकर आई पढ़ी-लिखी बबली बीहड़ो में दौड़ लगाते रमेश के प्रेम में बीहड़ो की ही हो गयी और जब रमेश ने फिरोती उपरान्त उसे घर पहुचाना चाहा तो बबली ने के दो टूक शब्द " महीनो बीहड़ में तेरे साथ रहकर भले ही में अछूती वे पवित्र हूँ लेकिन कौन समाज मुझे स्वीकार करेगा !" सुनकर रमेश पहलीबार हतप्रभ था ।
बागी/ डकैतो की शक्तिपीठ माँ रतनगढ़ बाली पर रमेश-बबली की विधि विधान के साथ वैवाहिक रीती सम्पन्न हुई और कभी कॉलेज की जीनियस रमेश के साथ कारबाइन पर इतिहास लिखने लगी ..!! सम्भवतः चम्बल के किस्सों में यह पहला किस्सा था जब दो स्नातक वैवाहिक बन्धन में बंधकर अपराधो में स्नातकोत्तर कर रहे थे ।

एक बार रमेश और बबली अपनी बिली जीप के साथ आगरा के आर्म कॉन्टेक्ट से एसएलआर और अन्य रायफलों के बुलेट्स लेने क्या पहुचे ..डीलर ने खटीक और मुस्लिम दंगो की बजह चलती पुलिस चेकिंग के कारण डिलेबरी देने की असमर्थता जताई! रुकने का पर्याप्त बंदोबस्त न होने के कारण उसकी जीप वाईपास अछनेरा मार्गपर रुकी और रमेश का सातिर दिमाक ने युक्ति निकाली ...क्यों न पुलिस के हथियार ही ले लिए जाए और दुःसाहस की नई इबारत लिखी गयी ।
दोनों ने अपने अनुभव और पढ़े-लिखे होने का लाभ उठाया और जीप जाकर रुकी अछनेरा चोकी पर ..बातो में ऑफिसर्स का अनुभव और बबली का साथ पुलिस बालो को धता देने में काम आया .....वह जिस पुलिस ऑफिसर रेस्ट हॉउस में रुका वही के कोथ व तैनात सिपाहियो की 8 एसएलआर और कई बॉक्स राउंड लूट लाया ।

रमेस के साहस दुःसाहस का दुसरा किस्सा अम्बाह कस्बे का हे...वह दिन और दिनों तरह होटल 'सुखसागर' कर्मचारियों के लिए सामान्य दिन था जब सुरक्षाबलो जेसी नम्बर प्लेट बाली विली जीप होटल सुखसागर की पार्किंग में खड़ी थी और सैना अफसर की तरह सूटेड-बूटेड रमेश होटल के कमरा नम्बर बीस में द्वतीय तल पर ठहरा था लेकिन लाखो चतुराई भरे प्रयास बाबजूद भी आपकी प्रशिद्धि/कुख्याति आपका चेहरा और नाम आम जनमानस में किसी प्रतिबिम्ब की तरह स्थापित या चस्पा कर देता हे और रमेश की भी पहिचान हो गयी ...होटल में हड़कम्प था और नीचे saf और मप्र पुलिस के चौकस जवान किन्तु कहते हे जब तक आई नही होती बाल-बांका नही होता और रमेश अपनी जान पर खेल गया बालकनी के सहारे निकली अंडर कंट्रक्शन हाइटेसन वायरिंग से दूसरी बिल्डिंग और सामान्य नागरिको की भीड़ बन पुलिस बल को चकमा देकर निकल गया ।

कहते हे की समान जोड़े चिरञ्जीवी नही होते ,यही कुछ रमेश के साथ हुआ भांजे के विवाह बाद रमेश कुछ काम से गाँव गया और पुलिस का नेटवर्क एक्टिव हो गया ...एम्बुस्ड हुआ,फायरिंग हुई ...यंहा पुलिस को जोड़े के रूप में रमेश गैंग की पहली सफलता हाथ लगी ...फायरिंग में बबली और चैना के साथ 3 अन्य पुलिस की गोलियों के शिकार हो गए पर किसी तरह रमेश और अन्य साथी बच निकले जिसमे रमेश बाल्मीकि नामक एक रमेश का विशवस्थ भी था । वह अपने कुछ साथियो के साथ अपने विश्वस्थ शरणप्रदाता गोहदुपुरा मुखिया के यंहा समय निकालने लगा ...उन्ही के दहगांव के पास बने ट्यूबेल की तिवरिया से सारे नेटवर्क को अंडर ग्राउंड करके स्वम अंडर ग्राउंड हो गया किन्तु नियति में जब अंत आता हे और समय बिपरीत होता हे तो सभी चतुराई और बुद्धिमत्ता बिपरीत हो जाती हे और अतिविश्वास के चलते रमेश को व्यूह में घेर लिया गया ।

अम्बाह,नगरा,महुआ की संयुक्त पुलिस पार्टी की धूल जब गोहदुपुरा के खेतो दिखाई तो सभी ने योजनाबद्ध कारीवायी की फलतः तिवरिया पर सेकड़ो राउंड फायर हुए यंहा तक की हेंण्ड ग्रेनेडो उस ट्यूबेल की तिवरिया के साथ रमेश की दुस्साहसिक कहानी भी सदा की तरह चम्बल के भरखो में धुंधली हो गयी ।
प्रत्यक्षी और जानकार ग्रामीणों के अलावा अगर तथ्यों पर गौर किया जाए तो उनके अनुसार मुखिया ने धोके से पहले जहर देकर रमेश को मार उसके द्वारा एकत्रित सम्पत्ति के लालच में मुखबिरी की थी और उसकी गवाह मुखिया जी पोरसा स्थिति वह कोठी हे जिस पर कभी कोयले तो कभी चॉक से शरारती लोग बड़े-बड़े हर्फो में लिख देते हे ...
"बागी रमेश राजावत की कोठी..!"

किस्से की सत्यता कुछ भी हो अंततः उपसंघारत यही निकलता हे की अपराध और अपराधी कैसा भी बुद्धि और समझ का धनी हो बुरे का अंत बुरा होता हे और कुछ समय बाद बीहड़िया लोग किस्सा बताकर भूलने लगते हे ...!!

#विशेष-
(प्रस्तुत घटनाक्रम,किस्सागोई,और तिथियों में अंतर सम्भावित हे। जो पुलिस सूत्रो,ग्रामीण लोगो की बातचीत पर आधारित हे , जो चम्बल पर अध्यन एवं शोधन कर रहे  लेखक के निजी विचारो और चम्बल आधारित संकलित पुस्तक "चम्बल एक सिंह अवलोकन" के किसी विवाद का उत्तरदायित्व नही लेता हे ।)
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जितेंद्र सिंह तोमर '५२से'
चम्बल मुरैना मप्र .

राजा भलभद्र सिंह 'चहलारी'

यथोचित प्रणाम।  जो शहीद हुये है उनकी...... 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में,  अंग्रेजों के खिलाफ बहराइच जिले में रेठ नदी के तट पर एक निर...