शुक्रवार, 29 नवंबर 2019

फेसबुक 1 साल पहले गजल

#ज्ञानदंडा
अगर पाना है कुछ, तो रोना जारी रखिये,
अपने चेहरे पे, दिखावे की लाचारी रखिये!

मक़सद हो जाये पूरा तो बदल लो चोला,
वरना तो अपनी, ये हिक़मतें जारी रखिये!

ज़िन्दगी जीना है तो सीख लो कुछ प्रपंच,
आँखों में कभी पानी, कभी चिंगारी रखिये!

एक जैसा आचरण सदा अच्छा नहीं होता,
कभी जुबान हलकी, तो कभी भारी रखिये!

जितना झुकोगे लोग तो झुकाते ही जाएंगे,
ज़रुरत पड़ने पे, अपनी बात करारी रखिये!

कोई आ जाये तुम्हारे दर पे मदद पाने को,
कैसे दिखानी है मजबूरी, पूरी तैयारी रखिये!

इस दुनिया में जीना भी एक कला है श्रीमन्,
मतलब की दुश्मनी, मतलब की यारी रखिये!!!!

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क्रांतिकारी गेंदालाल दीक्षित जी

आगरा की बाह तहसील के मई गांव में जन्मे गेंदालाल दीक्षित का जन्म 30 नवम्बर सन् 1888 ई० को हुआ। श्री गेंदालाल दीक्षित औरैया के दयानंद एंग्लो वैदिक विद्यालय में अंग्रेजी के अध्यापक थे । वह 'बंगाल विभाजन' के विरोध में चल रहे बालगंगाधर तिलक के स्वदेशी आंदोलन से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने पहले शिक्षित जनों ( गिन्दन गुट) का संघटन बनाने का प्रयास किया परन्तु उसमें सफल न हो सके।  जब अंग्रेज प्रथम विश्व युद्ध में फंसे हुए थे, उसी दौरान गेंदालाल दीक्षित ने शिवजी समिति बना कर अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध सशस्त्र क्रांति शुरू कर दी। रामप्रसाद बिस्मिल को प्रेरणा देकर मातृवेदी की स्थापना की और चम्बल के बागी डाकुओं को क्रांति में उतरा।
गेंदालाल दीक्षित व बागी दुर्दांत डकैत लक्ष्मणानंद ब्रह्मचारी और डकैत ठाकुर पंचमसिंह के संगठित दल ने ग्वालियर तथा यमुना और चम्बल नदी के किनारे के भागों में सफलतापूर्वक अनेक डाके डाले और धन का उपयोग क्रांति के लिए हथियारों की व्यवस्था की, पर मुखबरी के कारण गेंदालाल दीक्षित के नेतृत्व में 'मैनपुरी षड़यन्त्र' की योजना असफल हो गयी।

गेंदालाल दीक्षित गिरफ्तार हुए और उन्हें ग्वालियर के किले की अँधेरी कोठरी में रखा गया, जहाँ उन्हें छय रोग हो गया पर वे जेल से भागने में सफल हो गये और किसी तरह अपने घर पहुंचे, वहां भी वे पुलिस की दबिश के करना नहीं रुक सके और सरदार के छद्दम भेष में दिल्ली पहुंचे, दिल्ली के आगरा रोड पर बने एक मंदिर में उन्होंने शरण ली और फरार हालत में जीवन-यापन के लिये उन्होंने एक प्याऊ में नौकरी कर ली, इस बीच क्षय रोग से हालत दिन-प्रतिदिन बिगड़ती जा रही थी तो उन्हें दिल्ली के इर्विन अस्पताल में भर्ती कराया गया अंततः 12 दिसंबर 1920 को व अमर शहीद हो गए। उन्हें मैनपुरी षड्यंत्र केस में फरार घोषित किया और वे कभी पकडे न जा सके। दीक्षित जी उत्तर भारत के क्रान्तिकारियों के द्रोणाचार्य कहे जाते है।

दीक्षित जी की १३२वी जयंती पर मई गांव से बटेश्वर खाँद तक उनके स्मारक के संकल्प में पदयात्रा का आयोजन कल ११ बजे है आप सभी वहां पहुंच कर श्रद्धा-सुमन अर्पित करे। 

#भदावरगौरव #FreedomFighter @GendalalDixit

रविवार, 24 नवंबर 2019

सस्ते में

भेड़ों का इक झुण्ड है जनता, जिसकी अपनी कोई डगर नहीं
आगे की भेड़ किधर जाती है, इसकी उनको कोई खबर नहीं.
आँख मूंद बस चल पड़ती हैं, परिणाम की उनको फिक्र नहीं
यूं ही खट जाती हैं मिट जाती हैं, फिर भी उनको अक्ल नहीं.
आंख खोलकर दुनियाँ देखो,परखो,तब अनुशरण करो
ये डगर कहाँ ले जायेगी, जी भर कर पहले मनन करो
नेता के लिये ये भोली जनता, केवल मात्र एक रस्ता है
उनके लिये तुम जीवन भी देदो, उनको दिखता सस्ता है

राजा भलभद्र सिंह 'चहलारी'

यथोचित प्रणाम।  जो शहीद हुये है उनकी...... 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में,  अंग्रेजों के खिलाफ बहराइच जिले में रेठ नदी के तट पर एक निर...