===चम्बल एक सिंह अवलोकन===
भाग-१७ (द्वितीय)
¶डाकू अमृतलाल किरार¶
1944 में यूपी पुलिस ने अमृतलाल को पकड़ने के लिए कमर कस ली। उसके गैंग के लोगो की निशानदेही की जाने लगी। लेकिन इससे बेपरवाह अमृतलाल ने कई डकैतियां डाली और फिर छिपने के लिए वापस शिवपुरी के जंगलों की पनाह ली। जंगलों में रहते रहते अमृतलाल ने शिवपुरी पर अपनी निगाह गड़ाई और एक के बाद एक लूट और डकैतियां इलाके में डालने लगा। धीरे -धीरे अमृतलाल के गैंग का नाम,उत्तरप्रदेश के ईटावा, मैनपुरी, मध्यप्रदेश में शिवपुरी, गुना, मुरैना और ग्वालियर तो राजस्थान में सवाईमाधोपुर की पुलिस फाईलों में दर्ज होने लगा।
पुलिस अमृतलाल के पीछे थी और बेपरवाह अमृतलाल शहरों में आराम से घूमता था। इसी बीच 1946 में आगरा शहर में अमृतलाल अवैध असलहे के साथ पुलिस के हत्थे चढ़ गया। पहचान होने पर अमृतलाल पर डकैती के मुकदमों की झड़ी लग गई और 18साल की कड़ी सजा सुनाई गई। अमृतलाल पर अलग अलग शहरों में डकैतियों के चार्ज थे लिहाजा पुलिस उसको लेकर अलग-अलग शहर जाती थी। ऐसी ही एक पेशी शिवपुरी में भी हुई। और फिर कोलारस के थाने की हिरासत से अमृतलाल भागने में कामयाब हो गया। इस बार भी अमृतलाल अकेला नहीं गया। अपने गैंग के दो डाकुओं माता प्रसाद और साधुराम को तो साथ ले गया उसके साथ-साथ तीन दूसरे कैदियों को भी साथ लेकर निकल भागा।
दो साल तक अमृतलाल ने फिर पूरे इलाके में ताबड़तोड़ वारदात की। और एक दिन ग्वालियर शहर की पुलिस के हत्थे च़ढ़ गया। अवैध हथियारों के साथ गिरफ्तार अमृतलाल को सजा काटने के लिए जेल भेज दिया गया। लेकिन अमृतलाल ने तो जैसे जेल की दीवारों को खिलौना मान रखा था। 1949 में एक दिन अमृतलाल यहां से भी हैरतअंगेज तरीके से फरार हो गया।
ग्वालियर से फरार होने के बाद अमृतलाल एक दम से बदल गया। गैंग ने बेगुनाह लोगो को मारना और जिंदा जलाना भी शुरू कर दिया। 1950 में मैनपुरी जिले के एक गांव में पांच लोगों को डकैती के दौरान जिंदा जला दिया। एक के बाद एक डकैती। चंबल के बीहड़ों के बाहर अमृतलाल का नाम दहशत का नाम बन रहा था लेकिन चंबल के बीहड़ों के अंदर अमृतलाल का नाम एक दूसरी वजह से बिगड़ रहा था। अमृतलाल की अय्याशियां उसके गैंग के लोगो की निगाह में भी चढ़ने लगी थी।
चंबल के डकैतों ने अपने कुछ उसूल बनाएं हुए थे जिनको वो आसानी से या फिर लोगो की नजरों के सामने कभी तोड़ना नहीं चाहते थे। और सबसे पहला उसूल था कि गैंग के सदस्यों के परिवार पर कोई बुरी नजर नहीं रखेगा। लेकिन अमृतलाल की अय्याशियों ने सारे बीहड़ के सारे उसूलों को धता बता दी। अपने ही गैंग के जेल गए हुए सदस्यों के परिवार की महिलाओं के साथ अमृतलाल अवैध रिश्ते बनाने लगा।
इसके साथ साथ जिन लोगो ने भी अमृतलाल की हथियार खरीदने या छिपने में मदद की उनके परिवार की औरतों की ईज्जत के साथ भी अमृतलाल हथियारों के दम पर खेलने लगा था। इसी बीच एक डकैती के दौरान अमृतलाल को गोली लग गई। लेकिन अमृतलाल को गोली से भी ज्यादा चोट इस बात से लगी कि ये गोली उसी के गैंग मेंबर जयश्रीरमान ने उसको निशाना बना कर चलाई थी। गैंग में दरार पड़ चुकी थी। जय के साथ गैंग के कई लोग हो गये थे जो अमृतलाल की अय्याशियों से नाराज थे। अमृतलाल अपने समर्थकों को साथ लेकर वहां से निकला और इसी के साथ उसने फिर कभी किसी यूपी के आदमी को अपने गैंग में न रखने की कसम खाई। पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक अमृतलाल ने इसके बाद यूपी के इलाकों में कभी कोई वारदात नहीं की और पूरी तरह से अपना ऑपरेशन मध्यप्रदेश और राजस्थान को को ही बना लिया।
अमृतलाल की अय्याशियां पूरे चंबल में सुर्खियां बटोर रही थी। दारू और औरत अमृतलाल की कमजोरी कही जाने लगी। लेकिन अमृतलाल अपने दिमाग की मदद से फिर से बड़ा गैंग खड़ा करने में कामयाब हो चुका था। फिर से चंबल के इलाकों में अमृतलाल का सिक्का चल रहा था। डकैतियों में होने वाली फायरिंग और पुलिस मुठभेड़ से बचने का रास्ता निकाल चुका अमृतलाल अब पकड़ का मास्टर बन चुका था। कही से भी कही भी अमृतलाल आ सकता था और पकड़ को दिन दहाड़े ले जा सकता था। और पकड़ को इस तरह से रखता था कि पुलिस चाहकर भी कुछ नहीं कर सकती थी।
शिवपुरी, गुना, मुरैना और ग्वालियर के जाने कितने गांवों में अमृतलाल ने लूट और डकैतियां डाली। लेकिन पकड़ करने के बाद उसने इसी को अपना मुख्य औजार बना लिया। एक दो के बजाया कई बार तो वो आदमियों को झुंड के तौर पर जंगल में ले जाकर बंधक बना लेता था और जबतक एक मोटी रकम हासिल नहीं होती थी वो किसी को नहीं छोड़ता था। एक ऐसी ही वारदात में शिवपुरी शहर के एक प्रसिद्ध मंदिर में पूजा करने गए चालीस लोगो में से 26 लोगो का अपहरण करके वो पालपुर के जंगलों में दाखिल हो गया। एक दो दस दिन नहीं बल्कि महीनों तक पुलिस उनको छुड़ाने के लिए एडी-चोटी का जोर लगाती रही लेकिन अमृतलाल के शिकंजे से किसी भी पकड़ को बिना फिरौती रिहा नहीं करा पाई। पकड़ रिहा हुई और शिवपुरी पहुंची तो पुलिस के होश ठिकाने नहीं रहे जब किसी भी पकड़ ने अपने अपहरण से ही इंकार कर दिया।
अमृतलाल का नाम शिवपुरी के जंगलों में एक खौंफ बन चुका था। पुलिस के हाथ पैर बंधे हुए थे। दुसस्साहसी अमृतलाल हर बार पहले से अलग कारनाम कर पुलिस को चौंका दिया करता था। शहर के सेठ को लूटने से पहले सेठ जी के पैर छूं कर आशीर्वाद लेने की बात हो या फिर उमरी के राजा की गढ़ी लूटने का कारनामा। हर बार अमृतलाल के किस्से लोगो की जुबां पर चढ़ जाते थे।
अमृतलाल का हौंसला आसमान पर था और पुलिस को कुछ सूझ नहीं रहा थ। इसी बीच एक दिन अमृतलाल जा धमका राजस्थान के बारा जिले में। वहां के एक थाने कस्बां में दिनदहाड़े जा धमके अमृतलाल ने थाने के हथियार और गोलियों लूटी और आराम से चलता बना। 1954 में एक और थाने बैराड़ जा पहुंचा लेकिन पुलिस समय से चेत गई और अमृतलाल गैंग को भारी गोली बारी का सामना करना पड़ा। अमृतलाल थाने को लूटे बिना ही वापस हो गया। लेकिन इन घटनाओं ने पूरे चंबल में अमृतलाल को और भी कुख्यात कर दिया। अमृतलाल गैंग नंबर तीन बन चुका था। पुलिस चार्ट में पहले नंबर में रूपा पंडित यानि मानसिंह के बाद उसके गैंग का मुखिया दूसरे पर लाखन तो तीसरे पर जी 3 के नाम पर अमृतलाल का नाम दर्ज हो चुका था। पुलिस शिवपुरी के जंगलों में माथा पकड़ रही थी लेकिन अमृतलाल अपनी अय्याशियों में आराम से मशगूल था। हर गांव में अपने लिए एक औरत का इंतजाम करने वाले अमृतलाल की रात अय्याशियों में ही कटती थी।
पुलिस रिकार्ड में दर्ज दर्जनों औरतों के नाम और पते आज भी अमृतलाल की अय्याशियों का पता देते है। ये रिकॉर्ड़ उन महिलाओं के नाम पर रखा गया जिनके गहरे रिश्ते अमृतलाल के साथ थे।
अमृतलाल की तलाश में पुलिस जमीन-आसमान एक किए हुए थी। पौहरी थाने में नए इंचार्ज लाए गए। लेकिन अमृतलाल की अपराध कथा में पन्ने जुड़ते जा रहे थे। मध्यप्रदेश 1956 में नया राज्य बना था तो पुलिस ने चंबल को डकैतों से मुक्त करने के नाम पर एक बड़ा अभियान शुरू किया। शिवपुरी और गुना के जंगलों का खार बन चुके अमृतलाल पुलिस के पहले निशानों में से था। लेकिन बेपरवाह अमृतलाल ने मुरैना जिले में पाली घाट के पास शादी के लिए जा रही एक पूरी बारात को ही लूट लिया और चालीस हजार रूपए की रकम हासिल की। बारात से एक आदमी का अपहरण कर उसको जंगल में अपने साथ ले गया बाद में 60,000 की रकम हासिल करने के बाद ही उसको छोड़ा। पुलिस की नाक दम बन चुके अमृतलाल अपने 25 आदमियों के गैंग के साथ धामर में एक बडे़ ठाकुर के घर डकैती डाली और लाखों रूपए के साथ हथियार भी लूट कर ले गया। लूट के साथ ही दो लोगो को भी पकड़ के तौर पर अपने साथ ले गया।
इसके बाद उसने राजमार्गों पर ही गाड़ियां रोक कर पकड़ बनाना शुरू कर दिया। ग्वालियर के राष्ट्रीय राजमार्ग से दिन दहाड़े दो बड़े व्यापारियों का अपहरण किया और उनसे फिरौती वसूल कर ली। सुर्खियों में बढ़ते जा रहे अमृतलाल ने एक नया धंधा और शुरू कर दिया था. और वो था इलाके ठेकेदारों से चौथ वसूली का ।
शिवपुरी और गुना के जंगलों में तेंदुपत्ता का हर ठेकेदार उसको वसूली दिया करता था। कोई भी ठेकेदार बिना अमृतलाल को चौथ दिए अपना काम नहीं कर सकता था।
अमृतलाल के पास इतना पैसा हो गया था कि वो इसको ब्याज पर देने का काम भी करने लगा। इलाके के बडे सेठ उससे ब्याज पर पैसा लेने लगे। चंबल में एक किस्सा ये भी है कि चंबल के सबसे बड़े कातिल माने जाने वाले लाखन सिंह को भी उसने पचास हजार रूपया उधार दिया था। अमृतलाल ने पैसे के दम पर इलाके में पुलिस से बड़ा मुखबिर तंत्र खड़ा कर लिया था। और उन पर अमृतलाल पानी की तरह से पैसा बहाता था। पूर्व पुलिस प्रमुख के एफ रूस्तमजी ने इस बारे में लिखा कि पचास के दशक के शुरूआत में एक नाई के हेयरकट से खुश होकर अमृतलाल ने उसको100 रूपए का नोट ईनाम में दिया था। इतना ही नहीं एक मुखबिर ने दस मील साईकिल पर आकर पुलिस के बारे में खबर दी तो अमृतलाल ने उसको 1000रूपया दिया।
लेकिन उसकी अय्याशियां उसके खिलाफ जा रही थी। वो अब अपने ही इलाके लोगो को अपना दुश्मन मानने लगा था। औरतों को लेकर उसके लफड़े फैलने लगे थे। अपनी अय्याशियों और शराब की लत ने उसकी समझदारी को हवा कर दिया था. ऐसी ही एक वारदात में वो अपने ही रिश्तेदारों के गांव में जा चढ़ा।
गांव में कई लोगो को मौत के घाट उतारने वाले अमृतलाल को अपने दुश्मन का कुलनाश करना एक खेल लगता था। दुश्मनों का नामों-निशान मिटा देना। और इसी सनक में वो पुलिस थाने को ही उडाऩे चल दिया।
शिवपुरी पुलिस अधीक्षक चुन्नीलाल ने अमृतलाल को पकड़ने की जोरदार कोशिश शुरू की। इसके लिए इलाके को अच्छे से समझने वाले लहरी सिंह को पौहरी थाने का इंचार्ज बनाया गया। लहरी सिंह ने अमृतलाल के परिजनों पर शिकंजा कसा। लहरी सिंह ने कसम खाई कि वो अमृतलाल को जिंदा पकड़ कर उसको पांच जूते सरेआम लगाएंगे।
अमृतलाल को ये बात पता चल चुकी थी। उसने भी बदला लेने की ठान ली। लहरी सिंह और अमृतलाल एक दूसरे को मात देने के लिए चाल चलने लगे। लहरी सिंह की धार्मिक आस्था को इस्तेमाल कर उनको मौत के घाट उतारने के लिए अमृतलाल ने कई बार पांसे फेंके।
तो लहरी सिंह भी रोज अमृतलाल के गांव में जाकर उसके परिजनों का सरेआम बेईज्जत करने लगे। अमृतलाल अपनी मां को बहुत मानता था। एक दिन पुलिस अधीक्षक चुन्नीलाल और लहरी सिंह ने अमृतलाल की मां के साथ गेस्टहाउस में थोड़़ी सी सख्ती बरती तो ये खबर अमृतलाल को बर्दाश्त नहीं हुई। अमृतलाल को गुस्से में ये भी ख्याल नहीं रहा कि पुलिस से सीधे शहर में जाकर टकराना मौत से टकराने जैसा है। उसको धुन सवार हो गई कि चुन्नीलाल और लहरी सिंह को ठिकाने लगाना है। और तभी उसको पता चला कि चुन्नीलाल कोलारस थाने पर निरीक्षण करने जाने वाले है। बस इतनी खबर अमृतलाल के लिए बहुत थी और फिर वो जा धमका कोलारस थाना।
पुलिस थाने में घुसे अमृतलाल ने एक दीवान और सिपाही का कत्ल कर दिया। थाना लूट लिया और बंदूकों को उठा कर चलता बना। लेकिन चुन्नीलाल और लहरीसिंह किस्मत के चलते बच गए। क्योंकि कुछ देर पहले ही वो पुलिस लाईँस जा चुके थे।
इस घटना ने पूरे प्रदेश में बवाल खड़़ा कर दिया। एक डकैत दिन दहाडे थाना लूट रहा है और सीधे एसपी को मारने के लिए शहर में जा धमकता है। प्रदेश सरकार ने अपना ऑपरेशन कड़ा करने के लिए कहा। लेकिन अमृतलाल तो इस वारदात के बाद बीहड़ों के पत्थरों में गुम हो चुका था। पुलिस के पास न कोई मुखबिर था और न ही कोई पता । आखिर पत्थरों में खोजे तो किसको। लेकिन तभी लहरी सिंह और पुलिस को एक पत्थर में पारस दिखा। एक ऐसा पारस जो किसी लोहे को सोना नहीं बनाता बल्कि एक हैवान बने इंसान से इलाके को छुटकारा दिला सकता है।
लहरी सिंह का रात दिन सिर्फ अमृतलाल की या फिर उसकी खबर की खोज में ही कट रहा था। हर तरफ मुखबिर लगे हुए थे। लेकिन कही से ऐसी खबर नहीं आ रही थी जो पुलिस को अमृतलाल तक पहुंचा सके। लहरी सिंह अमृतलाल की किलेबंदी में दरार खोज रहे थे कि उनको पता चला कि एक बद्री किरार नाम का लड़का है। जिसका जीजा कभी अमृतलाल के गैंग में रहा है। और कुछ कहानी का सिरा भी लहरी सिंह को पता चला। बीस हजार का ईनामी डाकू जिंदा या मुर्दा किसतरह से कानून के हाथ आ सकता है ये योजना लहरी सिंह के दिमाग में उतर गई।
बद्री किरार की बहन पर अमृतलाल की बुरी नजर थी। बद्री का रथी किरार भी अमृतलाल गैंग का एक्टिव मैंबर था और उसकी मौत हो गई थी। अमृतलाल की नजर उसकी पत्नी नारायणी पर थी। उसको हासिल करने के लिए वो बद्री पर दबाव बनाए हुए था। लाचार बद्री परिवार बचाने के लिए उसके सामने झुकने को तैयार था कि लहरी सिंह उसतक पहुंच गए।
बद्री किरार के बारे में कई कहानियां पुलिस की फाईलो में दर्ज है। लेकिन उस वक्त के इंचार्ज लहरी सिंह बता रहे है कि किस तरह से उसको ट्रैनिंग दी गई और कैसे उसको कोड़ भी बताया गया। उसके साथ तिवारी जी कोलारस के इंचार्ज थे वो भी पुलिस के इस सबसे अहम ऑपरेशन को करीब से देख रहे थे।
बद्री को गैंग में एक मैंबर के तौर पर भेजा गया। उस वक्त तक अमृतलाल शराब और अपनी अय्याशियों के चलते गैंग में ही काफी बदनाम हो चुका था। और उसके बुरे दिन शुरू हो चुके थे। लगभग दो दशक से पुलिस की निगाहों से दूर और हर मुठभेड़ में साफ बच निकलने वाले अमृतलाल को लगने लगा था कि पुलिस की गोली और उसके सीने के बीच की दूरी लगातार कम हो रही है। शक्की मिजाज अमृतलाल बेरहम भी हो उठा। युद्दानगर और नवलपुरा की दो मुठभेड़ों में उसको बेहद नुकसान उठाना पड़ा। उसको अपने ही गैंग मेंबर दौलतरसिंह के भाई मंगलसिंह पर संदेह हुआ। मंगलसिंह को गैंग से निकाल दिया गया था। गुस्से से भरे अमृतलाल ने अपने वफादार दौलत सिंह को तड़पा तड़पा कर कत्ल किया। कत्ल के दिन गैंग में फूट पड़ गई। और अमृतलाल के दो बाजू सुल्तान सिंह और देवीलाल शिकारी गैंग से टूटकर चले गए थे।
अमृतलाल ने अपने गैंग में बहनोई मोतीराम को शामिल किया। मोतीराम को एक केस में सजा होनी थी तो अमृतलाल ने उसके दुश्मनों को बेरहमी से कत्ल कर दिया। मोतीराम भी बद्री की बहन पर नजर रखे था। इसके बाद दोनो ही बद्री किरार को परेशान किये हुए थे। इसी बीच बद्री पुलिस के साथ मिल कर दोनों का गेम बजाने का प्लान तैयार कर चुका था।
बद्री गैंग में शामिल हो गया लेकिन उसने लहरी सिंह के प्लॉन के मुताबिक ये जाहिर नहीं होने दिया कि वो किसी भी हथियार को चलाना जानता है। जब भी उसको कोई हथियार लेने के लिए कहा जाता वो कह देता कि नहीं उसको तो लाठी ही पसंद है। और फिर एक दिन जब अमृतलाल ने उसको कहा कि आज रात उसको बद्री की बहन के साथ गुजारना है। बद्री महीनों से इस दिन को टाल रहा था लेकिन अय्याश अमृतलाल ने उसको विवश कर दिया कि वो अपनी बहन को आज अमृतलाल को सौंप दे। बद्री ने कहा कि गोपालपुर में उसकी बहन आज की रात रहेंगी।
पूरा गैंग गोपालपुर की ओर चल दिया। रास्ते में अमृतलाल ने बद्री पर खुश होकर उसको शिवपुरी के डीएम का वो पर्चा भी दिखाया जिस पर अमृतलाल के सिर पर बीस हजार रूपए के इनाम की घोषणा लिखी हुई थी। बद्री का इरादा पक्का हो चुका था बस मौके की तलाश थी।
18 अगस्त 1959। मुंह अंधेरे से चला हुआ गैंग चलते चलते थक चुका था। भरी दोपहर में गोपालपुर से कुछ दूर पहले ही महुवा के पेड़ों के नीचे गैंग ने आराम करने का तय किया। मोतीराम और अमृतलाल दोनो खुश थे। गैंग के लोगो के लिए पास के गांव से बकरा लाकर काटा गया और शराब का लंबा दौर चला। खाने के बाद गैंग मेंबर तालाब के किनारे सो गए। बीच में अमृतलाल और मोतीराम सो गए और उनके पास बद्री किरार बैठ गया। बद्री ने जानबूझकर खाना नहीं खाया था। तबीयत खराब होने का बहाना किए हुए बद्री को पहली बार अमृतलाल ने अपनी राईफल थमा दी। शायद ये अमृतलाल की पहली और आखिरी भूल थी।
कुछ देर बाद जब गैंग के लोग सो गए तो बद्री ने सबकी राईफले और बंदूके उठाकर तालाब में फेंक दी और अमृतलाल की राईफल से उसको सटाकर एक गोली चला दी। चंबल में चली लाखों गोलियों में से सबसे कीमती गोली। एक ही गोली अमृतलाल को चीरते हुए मोतीलाल के सीने में धंस गई। एक गोली दो शिकार। चंबल के इतिहास में किसी डाकू का अपनी ही गोली से ऐसा अंत इससे पहले कभी नहीं हुआ होगा।
गोली की आवाज से उठे गैंग के मेंबर जैसे ही आगे बड़े । बद्री ने गोलियों की बौंछार कर दी। निहत्थे गैंग के सदस्य जान बचा कर जंगल की ओर भागे। बद्री ने मोती की राईफल भी उठाई और दोनो राईफलों को टांग कर गोपाल पुर जा धमका। थाने में जाकर लहरी सिंह को कोड वर्ड में सदेंश भेजने की गुहार की। काली गाय मिल गई।
थानेदार गजाधर सिंह ने भगा दिया लेकिन जल्दी ही उनको शक हुआ तो फौरन बद्री को बुलाया गया और बद्री उनको लेकर पुलिस पार्टी के साथ मौका ए वारदात पर पहुंच गया। मौके पर दो लाशे थी जिसमें से एक लाश पच्चीस साल से चंबल के सीने में धसें हुए कांटे यानि अमृतलाल की थी। पुलिस प्रमुख के एफ रूस्तम जी ने पत्रकारों को कहा कि ये एक चालाक लोमडी़ का अंत है। एंड ऑफ ए क्लेवर फॉक्स। और अमृतलाल की मोटी फाईल में आखिरी शब्द दर्ज हो गए।
विशेष:-प्रस्तुत लेख सूत्र पूर्व पुलिस अधिकारी के ऍफ़ रुस्तम जी की डायरी से संकलित व सन्दर्भित ।
जितेन्द्र सिंह तोमर'५२से"